नाम :-
संस्कृत | नाग |
हिन्दी | सीसा |
English | Lead |
Latin | Plumbum |
Symbol | Pb |
पर्याय:-
- सीसक
- शीषक
- सीस
- नागक
- वभ्र।
उत्पत्ति :-
पौराणिक मान्यतानुसार सर्पराजभोगी की अति सुन्दर कन्या को देखकर वासुकि सर्प का वीर्य स्खलित हो गया, जो नाग (Naag) के नाम से जाना जाने लगा।
परिचय:-
- Naag/ Lead does not rust when kept in air.
- But after being in the air for a long time, it becomes gray.
- Rainwater has an effect on it soon.
- Its main mineral is Galena.
प्राप्ति स्थान:-
विदेशों में यह ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, मेक्सिको एवं वर्मा आदि तथा भारत में राजस्थान (आबू, तारागढ), पंजाब, झारखण्ड (बिहार), कश्मीर, तमिलनाडु में मिलता है।
भेद:-
- कुमार नाग= गुणों में श्रेष्ठ होने से रस कार्यों में इसी का प्रयोग करना चाहिए।
- समल नाग
ग्राह्य नाग के लक्षण:-
- अग्नि पर शीघ्र द्रवित होने वाला
- भारयुक्त
- काटने पर अन्दर से कृष्णवर्ण, चमकदार, दुर्गन्धित एवं
- बाहर से देखने में काला नाग श्रेष्ठ होता है।
अग्राह्य नाग के लक्षण :-
- बाहर से श्वेत दिखलाई देने वाला
- भारहीन
- वृक्ष, काटने पर चमकरहित
- अन्य धातु मिश्रित (मलयुक्त)
- देर से द्रवित होने वाला नागधातु त्याज्य होता है।
नाग शोधन के प्रयोजन:-
शुद्ध नाग (Naag) का सेवन करने पर-
- प्रमेह, क्षय, कामला
- शरीर की कान्ति का नाश
- कुष्ठ, किलास, सन्धिवेदना, पक्षवध
- गुल्म, प्रमेह, आनाह, शोथ, भगन्दर, अग्निमांद्य
- अंसशोथ, बाहुओं में अकर्मण्यता, उदरशूल आदि अनेक रोगों को उत्पन्न करता है। अतः नाग का भली-भाँति शोधन करके मारण करना चाहिए।
नाग का शोधन:-
- नाग (Naag) को लौहदर्वी में रखकर कोयले की आँच पर पिघलाकर निर्गुण्डी त्वक् स्वरस में सात बार बुझाने पर शुद्ध हो जाता है।
- निर्गुण्डीत्वक् स्वरस पिठर यन्त्र में भरकर प्रत्येक बार निर्गुण्डी स्वरस बदलते रहना चाहिए।
नाग का मारण :-
मनःशिला एवं गन्धक द्वारा नागमारण-
शुद्ध नाग को एक लोहे की कड़ाही में डालकर चूल्हे पर चढ़ाकर अग्नि पर पिघलाये
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पिघल जाने पर समान भाग मनःशिला के चूर्ण का थोड़ा-थोड़ा आवाप करते हुए एक लोहे की कडछी से चलाते जाय
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ऐसा तब तक करें जब तक नाग सम्पूर्ण रूप से भस्म न हो जाय
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स्वांगशीत होने पर भस्म को निकालकर समभाग शुद्ध गन्धक मिलाकर नींबू स्वरस से मर्दन कर चक्रिका बनाकर सुखायें
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फिर शराव सम्पुट कर कुक्कुट पुट की अग्नि से तीन बार पकाने पर उत्तम नाग भस्म बन जाता है।
षष्टिपुट नाग भस्मः-
पिघली हुई नाग में चौथाई भाग इमली एवं अश्वत्थ की छाल का चूर्ण थोडा-थोडा करके डालते हुए जारण करें
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नाग भस्म जैसा हो जाने पर स्वागत करें।
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फिर खल्व में डालकर इस भस्म के बराबर शुद्ध मनःशिला मिलाकर बिजौरा नींबू स्वरस से अच्छी तरह घोटकर सुखाये
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फिर शराव सम्पुट कर पुट में पाक करें।
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स्वांगशीत हो जाने पर पुनः भस्म का 20 वाँ भाग शुद्ध मनःशिला मिलाकर नींबू स्वरस से मर्दन कर शराव सम्पुट कर पुटपाक करें
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इस प्रकार साठ बार पुट देने पर नाग की निरुत्थ भस्म बन जाती है।
नाग भस्म का वर्ण:-
कज्जल सदृश, सिन्दूराभपीतवर्ण।
नाग भस्म की मात्रा:-
1/4 – 1 रत्ती
अनुपान:-
मधु एवं विविधरोगहर स्वरस, क्वाथादि के साथ।
नाग भस्म के गुण:-
- रस – तिक्त, मधुर,
- वीर्य – उष्ण
- गुण – गुरु, स्निग्ध एवं सर
- कर्म – लेखन, बल्य, दीपन, प्रमेहघ्न, वृष्य, चक्षुष्य, आयुष्य एवं कान्तिप्रद होती है।
- प्रमेह, अग्निमांद्य, आमवात, त्रिदोषनाशक, रजतरञ्जनकर्ता, व्रण, अर्श, गुल्म, ग्रहणी, अतिसार आदि रोगों की नाशक एवं मृत्युहर होती है।
अपक्व नाग भस्म के दोष:-
अपक्व नाग (Naag) भस्म का सेवन करने पर गुल्म, पाण्डु, प्रमेह, अग्निमंथ, शोथ, भगन्दर आदि रोग उत्पन्न हो जाते है।
नाग भस्म सेवनजन्य विकार शमनोपायः-
स्वर्ण भस्म एवं हरीतकी चूर्ण को शर्करा के साथ 3 दिन तक सेवन करने पर अपक्व नाग भस्म सेवन जनित विकरों का शमन हो जाता है।
भस्म के प्रमुख योग:
- सूचिकाभरण रस
- त्रिवङ्ग भस्म
- नृपतिवल्लभ रस
- माणिक्य रस
- गर्भपाल रस
3 replies on “Naag ( नाग )- Lead / Plumbum : Dhatu Vargha”
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