रसगन्धकताराभ्रमाक्षिकाणां पलं पलम् । लोहस्य द्विपलं चापि गुग्गुलोः पलसप्तकम् ।।मर्दयेदायसे पात्रे दण्डेनाप्यायसेन च ।कटुतैलसमायोगाद्यामद्वमतनद्रिः ।। माषमात्रप्रयोगेण गृध्रसीमवबाहुकम् । स्नायुजान् वातजांश्चान्यान् नाशयेन्रत्र संयम् ।। ( भैषज्यरत्नावली )
सामग्री-
- शुद्ध पारद (Mercury) – 4 तोला ~ 40 ग्राम
- शुद्ध गन्धक (Sulphur– 4 तोला ~ 40 ग्राम
- रौप्य भस्म (Calcined silver) – 4 तोला ~ 40 ग्राम
- अभ्रक भस्म (Mica) – 4 तोला ~ 40 ग्राम
- स्वर्णमाक्षिक भस्म (Chalcopyrite) – 4 तोला ~ 40 ग्राम
- लौह भस्म (Calcined iron) – 8 तोला ~ 80 ग्राम
- शुद्ध गुग्गुलु (Commiphora mukul) – 28 तोला ~ 280 ग्राम
विधि-
- सबसे पहले पारद व गन्धक की कज्जली बना लें।
- गुग्गुलु को लोहे की खरल में मूसल में कड़वे तेल के छींटें डालकर कूटें।
- जब गुग्गुलु नरम पड़ जाए तो उसमें कज्जली व अन्य भस्म मिलाकर 6 घण्टे तक मर्दन करें।
- 3-3 रत्ती की गोलियां बना लें।
◾मात्रा व अनुपान- 1-1 गोली प्रातः सायं दूध से अथवा चोपचीनी, असगंध, एरण्ड मूल, सोंठ व कड़वे सुरंजान के क्वाथ से दें।
गुण व उपयोग-
- इस गुग्गुलु का प्रयोग गृध्रसी, अवबाहुक, कमर, घुटने का दर्द व स्नायुओं में होने वाले वातज विकारों में किया जाता है।
- स्नायु दौर्बल्य, मस्तिष्क की कमजोरी व सिर दर्द, अनिद्रा, मन्दाग्नि, पाण्डु, उदरवात आदि विकारों में इसके प्रयोग से विशेष लाभ होता है।
- रस- रक्तादि धातुओं की शुद्धि कर शरीर को बल- वर्ण और कान्तियुक्त बनाता है।