स्वरूप :-
- मलिन वस्त्र पहने हुए
- मलिं शरीर वाले
- रुक्ष केश
- शून्य मकान में रहने वाली
- खराब दर्शन वाली
- दुर्गन्ध युक्त
- विकराल स्वरूप वाली
- बादलों के समान कृष्ण वर्ण
पर्याय :-
- मलजा
- पूतना
- क्रौज्जी
- वैश्वदेवी
- पावनी
उत्पति व कर्म निर्धारण :-
दुंदुभी नामक रक्षक से युद्ध करने में कार्तिकेय का वर्ण नष्ट हो गया और फिर महा भूत, बादल, असुर, दिशाओं, समुद्र ने उनका धूप किया जिस से उनका वर्ण वापिस आया और जहां भगवान स्कन्द पवित्र हुए उसे पूतना नाम से जाना जाता है, भगवान ने कहा कि तू भिन्न मर्यादा लोगो के पास जाकर प्रवेश कर।
दूध का ग्रह पर प्रभाव :-
मधुर व कटु रस हो जाता है दूध में, वह उसके कारण मल व मूत्र की अधिकता होती है।
ग्रह के आक्रांत होने के कारण :-
एकांत गृह में , देवता के मंदिर में , श्मशान में , देवताओं की मूर्ति के पास चौराहे पर, नदियों के सायं पर जब बलाक भय से विक्षुब्ध होता है तब वह पूतना से संक्रमित हो जाता है।
काल :-
तीसरे दिन में , तीसरे महीने में या तीसरे वर्ष में पूतना ग्रह आक्रांत करता है।
पूतना के 8 भेद आचार्य हारित के अनुसार :-
भेद | लक्षण | चिकित्सा | अन्य विशिष्टता |
लोहित | सदी हुई सी बदबू आना बार – बार रोना | आचार्य ने इसके पुन: 8 भेद बताए है :- रोहिणी, विजया, काली, कृतिका, डकीनी, निशा, भूटकेशी, कृशंगी | |
रेवती | 2 दिन रोग होता है बालक अत्यधिक रोता व कांंपता है | काली मिट्टी की मूर्ति बनाकर गंध, खिचड़ी, धूप, राल, क्षार, काला धागा, पान आदि लेपत कर नैरत्य कोण में फैंक देना चाहिए | |
धवांशी | 3 रे दिन प्रभाव होता है,बालक रोता है, स्तनपान नहीं करता, ज्वर व अतिसार होता है व कोए की तरह बोलता है | पात्र में दही व चावल रखकर यव की खिचड़ी व पूरी किसी पात्र में ध्वजा रख कर काला पुष्प, काला चंदन का लेप कर धूप, अक्षत मधय में बलि दे | यह वायसी नाम से भी जानी जाती है |
कुमारी | 4 थे दिन प्रभाव होता है, अति ताप होता है, बहुत पीड़ा होती है, मुख सुख जाता है और बार बार रोता है | खीर, घृत, खांड, घी के 3 दिए बनाए, मिट्टी की प्रतिमा बनाकर, पुष्प, धूप, अक्षत, मध्य समय में दक्षिण दिशा में रखे | |
शकुनी | पांचवे दिन प्रभाव होता है, बालक स्तनपान नहीं करता, ज्वर, वमन, रोते है व खासी करते वक्त कापते है | तिल के लड्डू, श्वेत गंध, अक्षत, धूप व मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजा करे, उत्तर दिशा में स्थापित करके पुर्वह में बलि दे | |
शिवा | 6 थे दिन आक्रांत करती है, बालक रोता है, अत्यधिक श्वास लेता है, वमन करता है, अतिसार, कभी स्तनपान करता है कभी नहीं, कभी कापता है और कभी नहीं | सप्त ग्रही का चूरा देना चाहिए, खीर, दही, दीप व तिल के चूर्ण से पूजा करनी चाहिए, मृण्मय आकृति बनानी चाहिए | |
उधर्वकेशी | पहले की तरह | ||
सेना | 8 वे दिन , अधिक श्वास लेता है, अत्यधिक कम्पन होती है | दहि, चावल, तिल चूर्ण व पोपलिका देनी चाहिए, प्रदोष काल में बलि देनी चाहिए व 1 मास ओर साल तक देनी चाहिए ( आग्नेय दिशा में ) |
लक्षण :-
- अंग प्रति अंग ढीले
- दिन में सुख पूर्वक सोता है पर रात में नहीं सोता
- अतिसार
- शरीर से कोए के समान गंध आती है
- बार बार पानी पीना
- बालों का हर्षित होना
- वमन
- कंप
- तंद्रा
- हिक्का
- मूत्र अवरोध
- अंगो में स्थिलता
अरिष्ट लक्षण :-
- स्वपन में नक्षत्र, ग्रह, चन्द्र, सूर्य, तारे व नेत्र नीचे गिरे हुए दिखाई दे।
चिकित्सा :-
- गंगा जल, गुग्गूलु, सरसो, नीम पत्ते, बकरे का सिंग की 3 दिन धूप दे।
- तीन दिन तक निम्न लिखित मंत्र का पाठ करे फिर चोथे दिन ब्रहामण को भोजन करवाए
- ॐ नमो नारायणाय अमुकबालस्य व्याधि हन हन मुञ्च मुञ्च ह्रास ह्रास स्वाहा । चतुर्थदिवसे ब्राह्मणं भोजयेत् ततः सम्पद्यते शुभम् ।।
- नदी किनारे की मिट्टी लेकर पुतला बनाए, चंदन, फूल, नगरपान, लाल चंदन, लाल फूल, सात लाल ध्वजा, सात दीपक, 7 स्वस्तिक, पक्षियों का मांस मदिरा, भांत दक्षिण दिशा में रात को चोहराहे पर रख दे।
- वंश लोचन व मल्हेटी से सिद्ध घी
- सफेद गुंजा, बड़ी इनारून, कुंदरु, लाल घुंघली को धारण करना चाहिए।
अंध पूतना :-
स्वरूप :-
- कराल रूप वाली
- पिंगल वर्ण वाली
- सिर मुंदित
- कषाय वस्त्रों को पहने हुए
पर्याय :-
गंध पूतना
लक्षण :-
- स्तन द्वेष
- अतिसार
- कास
- हिक्का
- वमन
- ज्वर
- विवर्णता
- सदैव पेट के बल सोना
- शरीर से खट्टी गंध आंती है
- स्वर में तीक्ष्णता
- नेत्रों में अति वेदना
- कंडू
- शोथ
- पोथकी
चिकित्सा :-
- अक्षि रोग के समान चिकित्सा करनी चाहिए
- सुबह शयम श्वेत दूर्वा, सांप की केचुली, बच, श्वेत सरसो को घृत में मिलाकर धूप दे।
- बिल्व, अंकोठ, केथ, आक, कपास, बांस, एरंड रक्त, अस्मंतक, कमल, मल्हेठी, सौंफ, पुनर्नवा, दूध के साथ तैल मिलाकर घृत बनाए, मालिश करके क्षार मिलाकर पिला दे।
- पंच तिक्त के क्वाथ का सेवन
- मुर्गे की विष्ठा, बाल, सांप का केंचुल, पुराना वस्त्र की धूनी देनी चाहिए
शीत पूतना :-
प्रयाय :-
कट पूतना
स्वरूप :-
- मूंग व चावल खाने वाली
- सुरा व रक्त पान करने वाली
- जलाशय के पास रहने वाली
आक्रमण :-
पांचवे दिन , पांचवे महीने या पांचवे वर्ष में आक्रमण करती है।
लक्षण :-
- बेचैन होकर कपता है, रोता है
- कुछ देर बाद लिपट कर सो जाता है
- आंत्र सूजन
- सड़ने के समान गंध आना
- वासा की गंध आना
- पतले मल का होना
- तिरछा देखना
- तृष्णा
- एक पार्श्व ठंडा होना दूसरा गर्म होना
चिकित्सा :-
- शीत कारक चिकित्सा करनी चाहिए
- पीपली, पीपली मूल, चव्य, चित्रक, सोंठ, लघु पंच मूल, संधव लवन से सिद्ध घृत को मधु व शकरा के साथ सेवन करे
- स्नान करके गंगा जल, सांप की केचली, गूगल, नीम के पत्ते, नेत्र वाला, घृत लेकर धूप करे व निम्न मंत्र को पढ़े
- ॐ नमो नारायणाय अमुकस्य व्याधि चूर्णय चूर्णय हन हन स्वाहा।।
- कुम्हार की मिट्टी से पुतली बना ले और चंदन, नाग पान, चावल, सफेद फूल, 5 ध्वजा, 5 दीपक, 5 बड ईशान दिशा में, बलि दे और उसी जल से स्नान करे।
- कुटकी, नीम, खेर, पलाश, अर्जुन का काढा बनाकर दूध मिलाकर घी बनाए ओर बच्चे को पिलाएं
- लाल गुंजा, वरियार, सफेद गुंजा को धारण करना चाहिए।
अहि पूतना :-
एक और भेद पूतना का आचार्य सुश्रुत ने बताया है और जिसकी उत्पति का कारण दुष्ट स्तन्य पान से बताया है।
2 replies on “Putna Graha | पूतना ग्रह : Bal Graha – Symptoms and Management”
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[…] ग्रह :- शकुनि, रेवती, पूतना, अंधपुतना, शीतपुतना, मुखमंडिका, […]