Name :-
संस्कृत | शुक्तिः |
हिन्दी | सीप |
English | Pearl Oyster / Pearl mother |
पर्याय :-
- मुक्ताशुक्ति :- महाशुक्ति, मुक्ताप्रसू, शुक्तिका, मुक्त्ता्स्फोट, मुक्तामाता, मौक्तिकमन्दिर, मौक्तिकसू, मौक्तिकप्रसवा, अब्धिमण्डूकी।
- जलशुक्ति :- कृमिभू, शम्बूक, जलडिम्ब, पुटिका, तोयशुुुक्तिका, वारिशुक्ति, क्षुद्रशुक्तिका। ( आ. प्र. 2/328)
परिचय :-
- 16 वीं शताब्दी के बाद रसग्रन्थों में सुधावर्ग के अंदर शुक्ति (Shukti) का वर्णन मिलता है।
- यह Molluscs का पृष्ठ भाग है।
- दो शुक्तियों के पृष्ठ आवरण मिलकर एक – सम्पुटाकृति बन जाती है।
- इसमें पलने वाला प्राणी इस सम्पुट के अंदर रहता है।
- यह अंदर से श्वेत, चमकयुक्त, इन्द्रधनुष जैसे रंग से युक्त होता है, परन्तु बाहर से मटमैला, धूसर वर्ण ।
- आकृति में गोल, चम्मच की तरह, त्रिकोण आदि रूप में होता है।
- मछुआरे शुक्ति (Shukti, सीप) को उबलते पानी में डाल कर सीप को खोलते हैं ।
प्राप्ति स्थान :-
भारत के सभी समुद्र और बड़े जलाशयों में मिलती है।
Types:-
1. मुक्ताशुक्ति | आकृति – गोल, 1 इंच गहरी। अंडे के आकार की, 1 इंच गहरी और 6 -10 इंच लम्बी। अंदर से इंद्रधनुुुष जैसे रंगों में चमकती है, पीछे का भाग सुुुखी काई के मैले आवरणों से युक्त होता है। इसके बडे़ किनारों पर कई बड़े बड़े छिद्र होते हैं, अंदर मोती के निकालने के कई निशान होते हैं। |
2. जल शुक्ति | आकृति – 1/2 इंच गहरी, 2 -4 इंच लम्बी चम्मच के जैसी होती है। अंदर से श्वेत, हल्की इंंद्रधनुुुष चमक युुुक्त और बाहर से काई से युक्त, अधिक मोटाई, नहीं होती । छोटे बड़े जलाशयों में मिलती है। |
शुक्ति का शोधन :-
दोला यन्त्र विधि से ➡ जयन्ती स्वरस या किसी भी अम्ल द्रव में ➡ 3 घण्टे तक स्वेदन करने पर शुक्ति (Shukti) शुद्ध हो जाती है।
मारण :-
शुद्ध शुक्ति (Shukti) को छोटे टुकड़े कर के ➡ शराव सम्पुट में ➡ गजपुट में पाक करें ➡ स्वांगशीत (अपने आप ठण्डा होने पर) होने पर ➡ घृतकुमारी स्वरस की भावना दें ➡ टिकिया बना सुखाकर पुनः गजपुट में पाक करें ➡ 3 बार करने से शुक्ति (Shukti) की श्वेत वर्ण भस्म बन जाती है।
भस्म गुण :-
मुक्ताशुक्ति
जलशुक्ति
मुक्ता शुक्ति पिष्टि :-
शुद्ध शुक्ति के छोटे टुकड़े कर के ➡ सिमाक पत्थर के खल्व में ➡ गुलाब जल के साथ भावना देकर ➡ 3 दिन तक मर्दन करने पर पिष्टि बन जाती है।
शुक्ति भस्म और पिष्टि की मात्रा :-
2 – 4 रत्ती
अनुपान :-
मधु, दूध, घृत
प्रमुख योग :-
- प्रवालपञ्चामृत रस
- विषमज्वरान्तक रस
- वड़वानल रस
- महागन्धक
- ग्रहणीशार्दूल रस