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Swarn Bhupati Ras ( स्वर्ण भूपति रस ) : Medicine

शुद्धसूतं समं गन्दं मृतशुल्वं तयोः समम्। अभ्रलोहकयोर्भस्म कान्तभस्म सुवर्णजम्॥ राजतं च विषं सम्यक् पृथक्सूतसमं भवेत्। हंसपादीरसैमा दिनमेकं वटीकृतम्॥ काचकूप्यां विनिक्षिप्य मृदा संलेपयेदहिः। शुष्का सा वालुकायन्त्रे शनैर्मूद्ग्निना पचेत्॥ चतुर्गुञ्जामितं देयं पिप्पल्याद्रवेण तु॥ क्षयं त्रिदोषजं हन्ति सन्निपातांस्त्रयोदश। आमवातं धनुर्वातं शृङ्खलावातमेव च। आढ्यवातं पङ्गवातं कफवाताग्निमान्द्यनुत्। कटुवातं सर्वशूलं नाशयेन्नात्र संशयः॥ गुल्मशूलमुदावर्त ग्रहणीमतिदुस्तराम्। प्रमेहमुदरं सर्वामश्मरी मूत्रविग्रहम्॥ भगन्दरं सर्वकुष्ठं विद्रधिं महतीं तथा। श्वासं कासमजीर्णं च ज्वरमष्टविधं तथा। कामलां पाण्डुरोगं च शिरोरोगं च नाशयेत्। अनुपानविशेषेण सर्वरोगान्विनाशयेत्॥ यथा सूर्योदये नश्येत्तमः सर्वगतं तथा। सर्वरोगविनाशाय सर्वेषां स्वर्णभूपतिः॥

Ingredients :- पारद, गंधक, ताम्र भस्म (2 भाग ), अभ्रक भस्म, लोह भस्म, वेक्रांत भस्म, स्वर्ण भस्म, रजत भस्म, वत्सनाभ ( सभी समान मात्रा में )।

Bhawna dravaya :- हंसपादी स्वरस

Vidhi :- हंसपादी स्वरस में सभी द्रव्यो के सुष्म चूर्ण को डालकर एक दिन तक रख दे ( मर्दन करके ) उसके बाद में वटी बनाने लायक मिश्रण तेयार कर ले उसके बाद में कांच कूपी में भरकर बालुका यंत्र में धीरे धीरे मृदु अग्नि पर पाक करते है। उसके बाद में सरवंग शीत होने के बाद में सिद्ध औषध का चूर्ण बना लेते है।

Dossage :- 4 गूंजा ( 500 mg) अदरक व पीपली स्वरस के साथ।

Opened swarn bhupati ras

Ussage :- त्रिदोषज क्षय, 13 सनिपताज, आम वात, धनु वात, श्रृंखाल वात, पंगु वात, वात कफ रोग, अग्नि मंद, कटु वात, सर्व शूल, गुल्म, शूल, उदा वर्ट, ग्रहणी, प्रमेह, उदर रोग, सर्व अश्मरि, मूत्र ग्रह, भगंदर, सर्व कुष्ठ, महती विद्रधी, श्वास, कास, अजीर्ण, विविध ज्वर, कामला, पांडु, शिर रोग।

विशेष उपयोग :- सर्व प्रकार की कास।

Praise :- जैसे सूर्य उदय होने पर अंधेरे का नाश होजाता है उसी प्रकार स्वर्ण भूपति रस सभी रोगों का नाश कर देता है।

Refrence :- बसवराजीयम् 8 प्रकरणम्, माधव निदान, भारत भैषया रत्नाक़ार 8330।

Swaran bhupati ras

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