Name :-
संस्कृत | तृणकान्तमणिःः |
हिन्दी | तृणकान्त |
Latin | Succinum |
English | Amber |
- Hardness – 2.5
- Relative Density – 1.1
- Chemical Formula – C40H64O4
पर्याय :-
- तृणग्रह
- तृणकान्त
- तृणकान्तमणि
परिचय :-
- Fossil resin
- श्वेत पाण्डु, पीताभ रक्तवर्ण में मिलता है।
- इसका नाम तृण कान्त (Trinkant) इसलिए पड़ा क्यूँकि जब इस के टुकड़ों को ऊनी, रेशमी और सूती कपड़े पर रगड़कर किसी तृण (घास) से 2 – 4 इंच ऊपर रखें तो उस तृण को अपनी ओर खींच लेता है।
- कपड़े पर रगड़ने से इस में नींबू की सुगन्ध आती है।
- Used in making Ornaments.
प्राप्ति स्थान :-
- Italy
- Rumania
- Kacch in India
- Nicobar
शोधन :-
- तृणकान्त (Trinkant) में विषाक्तता न होने के कारण शोधन की जरूरत नहीं होती।
- मारण भी नहीं किया जाता।
तृणकान्त पिष्टि :-
सिमाक पत्थर के खल्व में डालकर ➡ गुलाब जल या अर्क चन्दन में ➡2 -3 दिन तक मर्दन करने से ➡ पाण्डु वर्ण की पिष्टि बन जाती है।
पिष्टि मात्रा :-
4 – 8 रत्ती
अनुपान :-
- मधु
- मिश्री
- मक्खन
गुण :-
- रुक्ष
- शीत
- ह्रदय, इन्द्रिय प्रसादन
- रक्त स्तम्भन
- पित्त नाशक
प्रमुख योग :-
- अर्शोघ्नी वटी
- ब्राह्मी वटी
- कहरुवा पिष्टि
- याकूती
- ज्वाहरमोहरा
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