** UP RAS SANKHYA MEH 8 HAI SYLLABUS KE ACCORDING PAR ALAG ALAG ACHARYO NE ALAG ALAG BATAYE H.
अंजन प्रयोग से महत्वकंक्षी आशीष का कुष्ठ टीक न होने से गैरिक की गंध ने मन को हर लिया ।
अंजन – अंजन
महत्वकांक्षी – कांक्षी
आशीष – काशीश
कुष्ठ – कंकुष्ट
गैरिक – गैरिक
गंध – गंधक
मन – मन: शिला
हर – हरताल
उप रस | पर्याय | भेद | शोधन | मारण | मात्रा |
गंधक | दिव्य,शुल्बारि,शुल्बरिपु, सौगन्ध, दुर्गन्ध, अतिगन्ध, पामारि | 3 शुकचंचुनिभम् (रक्त), पीत, शवेत | भृंगराज स्वरस 7 बार भावना | नहीं होता | 1-8 रती |
गैरिक | गैरिक, गैरेय, गिरी मृत्तिका, गिरिमृद्भव | 2 स्वर्ण , पाषाण (3 सामान्य {आयुर्वेद प्रकाश}) | गोदुद्घ भावना | नहीं होता | 2-4 रती |
कासीस | काशीशक,कासीस, पुष्पकासीस,पांशुक, पांशुकासीस | 2 वालुका, पुष्प | जम्बिर स्वरस 1 दिन आतप शुष्क भावना | स्नुहि पत्र स्वरस 7 भावना ( लघु पुट) | ½-2 रती |
कांक्षी | स्फटिका, तुवरी,फटिक,शुभ्रा,कांक्षी, रंगदा,दृढरंगा,सौराष्ट्री | 2 फटकी ( पीतिका/स्फटिक), फुल्लिका | कंझी भार्जन | लघुपुट | 2-4 रती |
हरताल | खर्जूर, विडालक, वंशपत्रक, चित्रगन्धक,पिंजर, पीतनक | 3 पत्री, पिंड, कृत्रिम | कुष्ठमंड स्वरस डोला यंत्र स्वेदन | अर्क दूध भावना + पलाश भस्म के मध्य ( भस्म यंत्र) | ¼-½ रती |
मन:शिला | रोगशिला, नैपालिका, कुनटी, नागजिह्वा, गोला,कुलटी,नाग माता | 3 शायामांगी (श्वेत), कणवीरका( पीत), खण्डाख्या( अतिरिक्त) | अगस्त्य पत्र स्वरस 7 भावना | नहीं होता | 1/32-1/16 रती |
अंजन | मेचक, लोचक, सौवीरांजन,सौवीर, कृष्णांजन | 5 सौवीराजन, स्त्रोत्र अंजन, रसंजन,पुष्पंजन,नीलांजन | भृंगराज स्वरस भावना | नहीं होता | … |
कंकुष्ठ | तालकुष्ठ, विरंग,तीक्ष्ण-दुग्धिका, रंगदायक, हेमवती, स्वर्णक्षीरी-निर्यास | 2 नलिकाख्य, रेणुक | शुंठी क्वाथ 3 बार | नहीं होता | 2 रती (1 यव) |