इस गुग्गुलु में वाय विडंग व गुग्गुलु के प्रधान होने के साथ, अन्य द्रव्योट के होने की वजह से इसका नाम आचार्यों ने विडङ्गादि गुग्गुलु ( Vidangaadi Guggulu ) रखा।
विडङ्गत्रिफलाव्योषचूर्ण गुग्गुलुना समम्।
सर्पिषा वटिकां कुर्यात्स्वादेद्वा हितभोजनः।
दुष्टवणापचीमेहकुष्टनाडीविशोधनः (आरग्वधादिवर्तिः)
आरग्वधनिशाकोलचूर्णाज्यक्षोद्रसंयुता।
सूत्रवर्तिर्वणे योज्या शोधनी गति नाशिनी (गुग्गुल वादिलेपः)
गुग्गुलुस्त्रिफलाव्योधैः समांशैश्षान्य-योजितः।
नाडीदुष्टवणं चापि जयेदपि भगन्दरम्॥ ( बसव. 21), ( योग रत्नाकर व्रण )
◾सामग्री-
- वायविडंग (Embelia ribes)
- हरड़ (Terminalia chebula)
- बहेड़ा (Terminalia bellirica)
- आंवला (Phyllanthus emblica)
- सोंठ (Zingiber officinale)
- मरीच (Piper nigrum)
- पिप्पली (Piper longum)
- गुग्गुलु (Commiphora wightii)
◾विधि– वायविडंग, हरड़, बहेड़ा, आंवला, सोंठ, मरीच, पिप्पली– इन सभी द्रव्यों को समान भाग लेकर कपड़छन चूर्ण कर लें। इन द्रव्यों के समान भाग गुुग्गुल लेें तथा मर्दन करेें। अब इसमें घृत मिश्रण कर गुटिका बना लें।
◾गुण व उपयोग- इस गुग्गुल के प्रयोग से निम्न रोगों का नाश होता है-
- दुष्ट व्रण
- अपची
- मेह
- कुष्ठ
- नाड़ी व्रण
- भगन्दर