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Trikantakadi Guggulu | त्रिकण्टकादि गुग्गुलु : Ingredients, Uses

Meaning behind its Name :- गोक्षुर का एक नाम ‘त्रिकंठक’ है और सर्व प्रथम इस योग में गोक्षुर ( त्रिकंठक ) का उपयोग है उसके बाद में अन्य द्रव्य इसलिए इस योग का नाम त्रिकण्टकादि गुग्गुलु (Trikantakadi Guggulu) हुआ है। यह योग विशेष रूप से वीर्य रोग ( 8 ) में उपयोग में आता है।

त्रिकण्टकानां क्वथितेऽष्टनिघ्ने पुरं पेचत्पाकविधानयुक्त्या । फलत्रिकव्योषपयोधराणां चूर्णं पुरेण प्रमितं प्रदद्यात् ।। १।। वटी प्रमेहं प्रदरं च मूत्राघातं च कृच्छूं च तथाऽश्मरीं च । शुक्रस्य दोषान् सकलांश्च वातान्निहन्ति मेघानिव वायुवेगः ।। २।। ( योगरत्नाकर )

Ingredients of Trikantakadi Guggulu:-

विधि / Process of making Trikantakadi guggulu :-

  • गोखरू का आठवां अंंश शेष क्वाथ में शुद्ध गुग्गुलु मिलाकर गुग्गुलु पाक की विधि से पाक करे ।
  • जब पाक सिद्ध हो जाए तब उसमें अवरा, हर्र, बहेड़ा, सोंठ, पिप्पली मरिच और नागरमोथा समभाग लेकर श्लक्ष्ण चूर्णकर गुग्गुलु के समान मात्रा में मिलाकर वटी बनाकर सेवन करे।

गुग्गुलु पाक की विधि :-

गुग्गुलु लेकर सर्वप्रथम इमामदस्ते में थोड़ा घृत मिलाते हुए गुग्गुलु को कूटते रहते है। जितना ज़्यादा गुग्गुलु को कूटते है यह उतना ज़्यादा गुणकारी होता है। जब गुग्गुलु मोम की तरह मुलायम हो जाये तो उसमें काष्ट औषधियों का चूर्ण डालते हुए अच्छे से कूटकर मिला लिया जाता है। फिर इसकी गोलियां बना ली जाती है।

लक्षण :-

  • सुखमर्दता
  • स्वरस्पर्शता
  • पकने पर द्रव्य में गंध,वर्ण,रस की उत्पति हो जाती है।
  • अँगुलियों से पकड़ने पर उनकी रेखाएं बन जाती है।
  • जल में डालने पर फैलता नही है।

Uses of Trikantakadi Guggulu :-

यह सम्पूर्ण वीर्य दोष तथा अन्यान्य दोषों को भी इस प्रकार नष्ट करता है, जिस प्रकार मेघ को वायु का वेग नष्ट कर देता है ।