अणु तेल (Anu tail) शरीर में सूक्ष्म से सूक्ष्म स्त्रोतों में जाकर रोगों को नष्ट करता है। अणु तेल को नस्य (Nasya treatment) {Nasya refers to nasal instillation of drops of the oil} में और इंद्रियों को बल प्रदान करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इसका सबसे बड़ा असर बाहरी संक्रमण को शरीर के अंदर नाक के रास्ते से रोकने में होता है।
इसका प्रयोग सिर:शूल (Headache), अर्दित (Facial paralysis), प्रतिश्याय (Common cold) और बाकी सभी ENT के रोगों में लाभकारी होता है।
चन्दनागुरुणी पत्रं दार्वीत्वङ्मधुकं बलाम् । प्रपौण्डरीकं सूक्ष्मैलां विडङ्ग बिल्वमुत्पलम् । हीबेरमभयं वन्यं त्वङ्मुस्तं सारिवां स्थिराम् ।। जीवन्तीं पृश्निपर्णी च सुरदारु शतावरीम् । हरेणुं बृहतीं व्याघ्र्ईं सुरभीं पद्मकेशरम् ।। विपाचयेच्छतगुणे माहेन्द्रे विमलेऽम्भसि । तैलाद्दशगुणं शेषं कषायमवतारयेत् ।। तेन तैलं कषायेण दशकृत्वो विपाचयेत् ।। अथास्य दशमे पाके समांशं छागलं पयः ।। दद्यादेषोऽणुतैलस्य नावनीयस्य संविधिः । अस्य मात्रां प्रयुञ्जीत तैलस्यार्धपलोन्मिताम् ।। स्निग्धस्विन्नोत्तमाङ्गस्य पिचुना नावनैस्त्रिभिः । त्र्यहात्रयहाच्च सप्ताहमेतत्कर्म समाचरेत् ।। निवातोष्ण समाचारी हिताशी नियतेन्द्रियः । तैलमेतस्त्रिदोषघ्नमिन्द्रियाणां बलप्रदम् ।।प्रयुञ्जानो यथाकालं यथोक्तानश्नुते गुणान् । (च. सू. 5/63-70 (1/2)
घटक द्रव्य/ Ingredients:-
• स्नेह द्रव्य =
- तिल तेल – 2.700 लीटर
• द्रव द्रव्य =
- अजा दुग्ध (Goat milk) – 2.700 लीटर
• क्वाथ द्रव्य =
- श्वेत चन्दन/ Sandalwood (Santalum album) – 100 ग्राम
- अगुरु (Aquilaria agalocha) – 100 ग्राम
- तेजपत्र (Cinnamomum tamala) – 100 ग्राम
- दारुहरिद्रा (Berberis aristata) – 100 ग्राम
- मधुयष्टी/ Mulaithi (Glycyrrhiza Glabra) – 100 ग्राम
- बला (Sida cordifolia) – 100 ग्राम
- प्रपौण्डरीक (Nymphaea lotus) – 100 ग्राम
- सूक्ष्मैला/ Cardamom (Elettaria cardamomum) – 100 ग्राम
- वायविडङ्ग (Embelia ribes) – 100 ग्राम
- बिल्व (Aegle marmelos) – 100 ग्राम
- नीलकमल (Nymphaea nouchali) – 100 ग्राम
- सुगन्धबाला (Valeriana Officinalis) – 100 ग्राम
- खस (Chrysopogon zizanioides) – 100 ग्राम
- केवटीमोथा (Cyperus tenuiflours) – 100 ग्राम
- दालचीनी (Cinnamomum zeylanicum) – 100 ग्राम
- नागरमोथा (Cyperus rotundus) – 100 ग्राम
- सारिवा (Hemidesmus indicus) – 100 ग्राम
- शालपर्णी (Desmodium gangeticum) – 100 ग्राम
- जीवन्ती (Leptadenia reticulata) – 100 ग्राम
- पृश्निपर्णी (Uraria picta) – 100 ग्राम
- देवदारू (Cedrus deodara) – 100 ग्राम
- शतावरी (Asparagus racemosus) – 100 ग्राम
- रेणुका (Vitex agnus-castus) – 100 ग्राम
- बृहती (Solanum indicum) – 100 ग्राम
- कण्टकारी (Solanum virginianum) – 100 ग्राम
- कुन्दरु (Coccinia grandis) – 100 ग्राम
- पद्मकेशर (Nelumbo nucifera Gaertn)- 100 ग्राम
- क्वाथार्थ जल – 270 लीटर
- अवशिष्ट क्वाथ – 27 लीटर
निर्माण विधि/ Preparation of Anu tail:-
- सर्वप्रथम क्वाथ द्रव्यों को यवकुट चूर्ण करके किसी बड़े पात्र में 270 लीटर माहेन्द्र जल (आकाशीय जल) में पकाकर दशमांश (One-tenth) शेष (27 लीटर) क्वाथ का निर्माण किया जाता है।
- फिर क्वाथ को छानकर अलग पात्र में रखा जाता है।
- इसके बाद एक स्टील के पात्र में तिल तैल (Sesamum indicum) को डालकर उसमें प्रत्येक बार 2.700 लीटर क्वाथ डालकर 9 बार तैल को पकाया जाता है।
- फिर अन्त में (दसवीं बार) 2.700 लीटर क्वाथ, 2.700 लीटर अजादुग्ध (Goat milk) को 9 बार सिद्ध तैल में डालकर पकाया जाता है।
नस्य मात्रा/ Dosage:-
- सप्ताह में तीन बार आधा पल (24 मि. ली.) / 2 drops (बूंद) per nostril
प्रयोग विधि/ How to use Anu tail:-
Read Nasya prayog vidhi.
मुख्य उपयोग/ Therapeutic uses:-
- नस्य (Nasya treatment)
- मन्यास्तम्भ (Cervical spondylosis)
- शिरःशूल (Headache)
- अर्दित (Facial paralysis)
- हनुस्तम्भ (Lock jaw)
- जीर्ण प्रतिश्याय (Chronic Cold)
- अर्धावभेदक (Migraine)
- शिरःकम्प
- त्रिदोषघ्न
- सभी इन्द्रियों के लिए बल्य।
सावधानियां/ Precautions:-
- नस्य लेते समय मनुष्य तेज वायु रहित उष्ण प्रदेश में रहें।
- हितकर भोजन का सेवन करें।
- अणु तैल को इस्तेमाल करने से पहले हल्का सा गुनगुना (warm) करें ताकि तैल की absorption अच्छे से हो।