त्रिफलायास्त्रयः प्रस्थाः प्रस्थैका चामृता भवेत्।।
सङ्कट्य लोहपात्रे तु सार्धद्रोणाम्बुना पचेत्।
जलमर्धशृतं ज्ञात्वा गृह्णीयाद् वस्त्रगालितम्।।
ततः क्वाथे क्षिपेच्छुद्धं प्रस्थ गुग्गुलं सम्मितम्।
पुनः पचेदयःपात्रे दा सङ्घट्टयेन्मुहुः।।
सान्द्रीभूतं च तं ज्ञात्वा गुडपाकसमाकृतिम्।
चूर्णीकृत्य ततस्तत्र द्रव्याणीमानि निक्षिपेत्।
त्रिफला द्विपला ज्ञेया गुडूची पलिका में।
षडक्षं त्र्यूषणं प्रोक्तं विडङ्गानां पलार्धकम् ।
दन्ती कर्षमिता कार्या त्रिवृत्कर्षमिता स्मृता।
ततः पिण्डीकृतं सर्वं घृतपात्रे विनिक्षिपेत्।।
गुटिकाः शाणमात्रेण युञ्ज्याद् दोषाद्यपेक्षया।
अनुपात भिषग्दद्यात् कोष्णं नीरं पयोऽथवा।।
मञ्जिष्ठादिशृतं वापि युक्तियुक्तमतः परम्।
जयेत् सर्वाणि कुष्ठानि वातरक्त त्रिदोषज।।
सर्वव्रणानि गुल्मानि प्रमेहपिडिकास्तथा।
प्रमेहोदरमन्दाग्निकासश्वयथुपाण्डुजान्
हन्ति सर्वामयान्नित्यमुपयुक्तो रसायनः।
कैशोरकाभिधानोऽयं गुग्गुलुः कान्तिकारकः।।
वासादिना नेत्रदान गुल्मादीन् वरुणादिना।
क्वाथ खदिरस्यापि व्रण काष्ठानि नाशयेत्।।
अम्लं तीक्ष्णमजीर्णं च व्यवायं श्रममातपम्।
मद्यं रोषं त्यजेत् सम्यग्गुणार्थी पुरसेवकः।। (शा. सं. मं. 7/70-81)
सामग्री / Ingredients:-
त्रिफला (Terminalia chebula Terminalia bellirica Phyllanthus emblica) | 3 प्रस्थ + 8 तोला ~ 1920g + 80g |
गिलोय (Tinospora cordifolia) | 1 प्रस्थ + 4 तोला ~ 640g + 40g |
गुग्गुल (Commiphora wightii) | 64 तोला ~ 640g |
सोंठ (Zingiber officinale) | 2 तोला ~ 20g |
काली मिर्च (Piper nigrum) | 2 तोला ~ 20g |
पीपल (Ficus religiosa) | 2 तोला ~ 20g |
वायविडंग (Embelia ribes) | 2 तोला ~ 20g |
जमालगोटा की जड़ (Croton tiglium) | 1 तोला ~ 10g |
निशोथ (Operculina terpethum) | 1 तोला ~ 10g |
विधि:-
- त्रिफला 3 प्रस्थ (1920g) व गिलोय 1 प्रस्थ (640g) को कूटकर लोहे की कड़ाही में लगभग 19 सेर 3 खटांक (16kg) जल मिलाकर काढ़ा बनाएं, जब जल आधा शेष रह जाए तब उसे उतार कर छान लें।
- इस काढ़े में 64 तोला (640) उत्तम गुग्गुलु डालकर मन्दाग्नि पर पकाएं।
- जब गुग्गुल पतला होकर काढ़े में मिल जाए तब काढ़े को छानकर पुनः अग्नि दें व निरन्तर कड़छुल चलाते रहें।
- जब गुग्गुल गाढ़ा हो जाए तब कड़ाही से निकाल कर उसमें शेष द्रव्यों का चूर्ण, गिलोय व त्रिफला का बचा हुआ चूर्ण मिलाकर घी अथवा एरण्ड तैल से मर्दन कर 3-3 रत्ती की गोलियां बना लें।
मात्रा व अनुपान:–
2-4 गोली सुबह-शाम मंजिष्ठादि क्वाथ या गर्म जल या दूध के साथ दें।
गुण व उपयोग-
- इसके (Kaishore guggulu) सेवन से एकदोषज, द्विदोषज व जीर्ण सूखा या स्त्रावयुक्त फैला हुआ घुटनों तक पहुंचा हुआ वातरक्त नष्ट हो जाता है।
- यह व्रण, कास, कोढ़, गुल्म शोथ, उदर रोग, पाण्डु, प्रमेह, अग्निमांद्य, विबन्ध, प्रमेह पिड़िका आदि नाशक है।
- इसके (Kaishore guggulu) नियमित प्रयोग से वात व रक्त सम्बन्धि विकार समाप्त हो जाते हैं।
- यह गुग्गुलु वातरक्त, कुष्ठ व रक्त विकारों में विशेष लाभकारी है।
- यह गुग्गुलु हर समय सेवन किया जा सकता है।