रसगन्धकलोहाभ्रशुल्वभस्मसमांशकम् ।
त्रिफला द्विगुणा प्रोक्ता त्रिगुण ञ्च शिलाजतु।।
चतुर्गुणं पुरं शुद्धं चित्रमूलं च तत्सम।
तिक्ता सर्व समा ज्ञेया सर्वं सचूर्ण्य यत्नतः।।
निम्बवृक्ष दलाम्भोभिर्मर्दयेदद्विदिनावधि।
ततश्च वटिका कार्या राजकोलफलोपमा।। ( र. र. स. 20/106-108 )
घटक द्रव्य :-
- शुद्ध पारद – 1 भाग
- शुद्ध गंधक -1 भाग
- लौह भस्म – 1 भाग
- ताम्र भस्म – 1 भाग
- अभ्रक भस्म – 1 भाग
- हरीतकी – 2 भाग
- आमलकी – 2 भाग
- बिभीतकी – 2 भाग
- शुद्ध शिलाजतु – 3 भाग
- एरण्ड मूल – 4 भाग
- शुद्ध गुग्गुलु – 4 भाग
- कटुका – 22 भाग
भावना द्रव्य :- नींब पत्र स्वरस
Trick to Learn :-
तीनों (त्रि)लोक में शीला जैसे लौह पुरुष की आभा लिए हुए अरुण ने ताम्र गंध वाली गेंद को 22 हिस्सो में काट दिया।
- तीनों ( त्रि ) लोक – त्रिफला ( 6 भाग )
- शीला – शिलाजीत ( 3 भाग )
- लौह – लौह भस्म ( 1 भाग )
- पुरुष – पारद ( 1 भाग )
- आभा – अभ्रक भस्म ( 1 भाग )
- अरुण – एरंड मूल ( 4 भाग )
- ताम्र – ताम्र भस्म ( 1 भाग )
- गंध – गंधक ( 1 भाग )
- गेंद – गुगूलु ( 4 भाग )
- 22 हिस्सो में काट दिया – कटुका ( 22 भाग )
निर्माण विधि :-
- सर्वप्रथम शुद्ध पारद एवं शुद्ध गंधक की कज्जली बनाकर उसमें भस्मों को मिलाकर मर्दन करें।
- फिर शुद्ध गुग्गुलु को कूटकर नरम करके शिलाजीत आदि शेष द्रव्यों को सूक्ष्म चूर्ण करके खल्व में मिश्रित कर निम्बपत्र स्वरस की भावना देकर 2-2 रत्ती की गोलियाँ बनाकर रखें।
मात्रा, अनुपान व उपयोग :-
मात्रा:- 250 से 500 मि. ग्रा.
अनुपान:- ईख स्वरस, मधु, निम्बपत्र स्वरस, क्षीर, जल मुख्य
उपयोग:- कुष्ठ, जीर्णज्वर, मधुमेह, मेदो दोष, यकृत विकार।