हिंगुल विषं टंकं जातीकोषफले तथा।
मिरिचं पिप्पली चैव कस्तूरी च समांशिका।।
रक्तिद्वयं ततः खादेत् सन्निपाते सुदारुणे॥ (र. सा. सं. ज्वराधिकार-177)
घटक द्रव्य :-
- शुद्ध हिंगुल – 1 भाग
- शुद्ध टंकण – 1 भाग
- जायफल – 1 भाग
- पिप्पली – 1 भाग
- शुद्ध वत्सनाभ – 1 भाग
- जावित्री – 1 भाग
- मरिच – 1 भाग
- कस्तूरी – 1 भाग
भावना द्रव्य :- जल-यथावश्यक
Trick to Learn :-
पीपल के नीचे बैठी सावित्री ने मरे जयपाल से कहा वत्स ! और ही बरसाओ कस्ती पर कंकड़ ( पत्थर )।
- पीपल – पिप्पली
- सावित्री – जावित्री
- मरे – मारीच
- जयपाल – जय फल
- वत्स – शुद्ध वत्सनाभ
- ही – हिंगुल
- कस्ती – कस्तूरी
- कंकड़ ( पत्थर ) – टंकण
सभी द्रव्य सम भाग में लेने है।
मात्रा व उपयोग :-
निर्माण विधि :- सर्वप्रथम शुद्ध हिंगुल से शुद्ध टंकण तक के द्रव्यों को सूक्ष्म पीसकर खर्च में डालकर शेष द्रव्यों के सूक्ष्म चूर्ण को मिलाकर जल के साथ मर्दन करके 1-1 रत्ती की गोलियाँ बना सुखाकर रखें।
मात्रा :- 250 मि. ग्रा.
मुख्य उपयोग :- दारुण सन्निपात ज्वर, ज्वर, प्रतिश्याय।।