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Krimija Shiroroga | कृमिज शिरोरोग : Causes, Symptoms, Treatment

जिस शिरोरोग में सुई चुभने के समान अत्यधिक पीड़ा हो तथा ऐसा प्रतीत हो कि सिर का भीतरी भाग कृमियों के द्वारा खाया जा रहा है, उसे क्रिमिज शिरोरोग (Krimija Shiroroga) कहते हैं। यह दारुण रोग है।

निदान/Etiology:-

तिलक्षीरगुडाजीर्णपूति संकीर्ण भोजनात् ।क्लेदोऽश्रृक्कफमांसानां दोषलस्योपजायते ।। ततः शिरसि संक्लेदात् क्रिमयः पापकर्मणः । जनयन्ति शिरोरोगं जाता वीमत्सलक्षणम् ।। (च. सू. 17/ 27-28)

  • तिल, दुग्ध, गुड़ आदि का अत्यधिक सेवन।
  • भोजन के जीर्ण न होने पर भी पुनः भोजन कर लेना।
  • पूतियुक्त व संकीर्ण (वीर्यादि विरूद्ध बहुत से द्रव्यों का एकत्र) भोजन करने से।

सम्प्राप्ति:-

उपर्युक्त निदान सेवन से रक्त व कफ, मांस में क्लेदता

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तीनों दोषों के कुपित होने पर पापकर्म पुरुष के शिर पर कृमि उत्पत्ति।

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कृमिज शिर: रोग (Krimija Shiroroga) उत्पत्ति

लक्षण/Symptoms:-

व्यधच्छेदरूजाकण्डूशोफदौर्गत्यदुःखितम् । क्रिमिरोगातुरं विद्यात् क्रिमीणां दर्शनेन च।। (च. सू. 17/29)

निस्तुद्यते यस्य शिरोऽतिमात्रं सम्मक्ष्यमाणं स्फुटतीव चान्तः । घाणाञ्च गच्छेत्सलिलं सरक्त शिरोऽमितापः कृमिभिः स घोरः।।(सु.उ. 25/10)

  • वेधन छेदनवत् रूजा
  • कण्डू, शोफ, दुर्गन्धता
  • अत्यन्त तोदवत् पीड़ा।
  • शिर कृमियों द्वारा खाया जा रहा है ऐसा प्रतीत होता है।
  • कपालास्थियों का स्फुरण सा प्रतीत होता है।
  • नासा से रक्त व पूय मिश्रित जल का साव
  • ज्वर, कास, बलक्षय, कपाल रूक्षता, शोफ
  • तालु तथा शिर में कण्डू, शोष तथा प्रमीलक (स्तिमितता) होते हैं।
  • ताम्र व अच्छ सिंघाणक का स्राव
  • कर्णनाद ।
  • नासिका से रक्त निकलता है (हंसराज निदान – 60/6)
  • मुख व नाक से दुर्गंध आती है। (अष्टांग हृदय)

चिकित्सा/Treatment:-

क्रिमिजे चैव कर्तव्य तीक्ष्णं मूर्धविरेचनम् ।। ( च. चि. 26/184) कृमिजे शोणितं नस्यतेन मूर्च्छन्ति जन्तवः। मत्ताः शोणितगन्धेन निर्यान्ति घ्राणवक्त्रयोः। सुतीक्ष्णनस्य धूमाभ्यां कुर्यान्निर्हरणं ततः।। (अ.हृ.उ. 24 / 15)

  • तीक्ष्ण शिरोविरेचक द्रव्यों का प्रयोग।
    • त्वगादी तैल नस्य
    • नीम तेल, पीलू तैल नस्य
    • विडंग, बकरी के दूध के साथ नस्य
    • त्रिकटु, शिग्रु व करंज को पीसकर अवपीड़ नस्य
    • सर्व प्रथम रक्त का नस्य (सु. उ. 25/ 26-28)
      • कृमि अस्थि के सूक्ष्म स्त्रोत् में घूमने लगते हैं
      • कुर्चक द्वारा निकाले
      • अथवा सप्तपर्ण की त्वचा या पुष्पों के रस का नस्य।
  • शुक्त, तिक्त व कटु द्रव्य के क्वाथ व मधु का कवल ग्रहण।
  • कृमिघ्न पदार्थों का सेवन
  • सड़ी हुई मछली को कृमि नाशक द्रव्यों के साथ अंगार पर रखकर धूम का नस्य
  • विडङ्गादि तैल
  • अपामार्ग तैल

निषेध:-

न तु जातुरूधिरमवसेचयेत् । जन्तुभिः पातिशोणिते हि शिरसि पुनरयावसेकादकाण्डे मृत्यु स्यात। क्रिगि चिकित्सितं चेक्षेत ।। (अ. संग्रह उ. 28 / 25)

वैद्य भूल से भी रक्त मोक्षण न करें। कृमियों द्वारा पूर्व में ही रक्त पीये जाने के कारण इस रक्ताल्पता अवस्था में यदि रक्त मोक्षण किया जाए तो अकाल मृत्यु संभव है।

Modern co-relation:-

Invasive Fungal Sinusitis (IFS)

  • Caused by Aspergillus and mucormycosis fungal growth in sinonasal tract
    • Acute ( less than 4 weeks)
    • Chronic
  • Marked by patchy haemorrhages, mucosal inpartion, blackish dead/ decayed necrosed sinonasal mucosa along with bone invasion
  • Exclusively seen in diabetic, hematological malignancy, solid organ transplant recipients, immunosuppression, HIV
  • Fever of unknown origin with proper IV antibiotics for 48 hours with sinonasal symptoms
    • Facial pain/ heaviness
    • Headache
    • Nasal discharge
    • Hyposmia and facial numbness
    • Discoloured mucosa (grey/ green- ishaemic, black – necrosed)

Management:-

  • Maxillectomy
  • IV Amphotericin B = 0.25-1 mg/kg/day
  • Liposomal Amphotericin B = 3-5 mg/kg/day
  • Voriconazole 6mg/day BD