नागरं पिप्पली चव्यं पिप्पलीमूल चित्रकौ। भृष्टं हिंग्वजमोदा च सर्षपा जीरकद्वयम्।। राना शक्रयवाः पाठा विडङ्गं गजपिप्पली । कटुकाऽतिविषा, भार्गी वाजिगन्धा वचा तथा।। प्रत्येकं कार्षिकाणि स्युर्द्रव्याणीमानि विंशति । द्रव्य म्यः सकलेभ्यश्च त्रिफला द्विगुणा भवेत् ।। एभिश्चूर्णी कृतैः सर्वैः समो देयश्च गुग्गुलुः । गुडूच्या दशमूलस्य क्वाथे पक्वो नवः शुभः ।। वङ्गं रौप्यं च नागं च लौहं ताम्रमथाभ्रकम् । मण्डूरं रससिन्दूर प्रत्येक पलसम्मितम् ।। रक्तित्रयमिताः कार्या वटीया यथोचिताः । गुग्गुलुर्योगराजोऽयं त्रिदोषध्नो रसायनः ।। रास्रादिक्वाथसंयुक्तो विविधं हन्ति मारुति। मेदोवृद्धिं तथा कुछं मंजिष्ठादियुतो हरेत् । । क्वाथेन निम्बनिर्गुण्ड्योः सर्व्रणनिसूदनः ।। ( शार्ङ्गधरसंहिता म० अ०7 )
सामग्री-
- सोंठ (Zingiber officinale)
- पिप्पली (Piper longum)
- चव्य (Piper retrofractum)
- पिप्पलीमूल
- चित्रकमूल की छाल (Plumbago zeylanicum)
- हींग (Ferula asafoetida)
- अजवायन (Trachyspermum ammi)
- पीली सरसों (Brassica juncea)
- जीरक (Cuminum cyminum)
- रेणुका (Vitex negundo)
- इन्द्रजौ (Holarrhena pubescens)
- पाठा (Cissampelos pariera)
- वायविडंग (Embelia ribes)
- गजपिप्पली (Scindapsus officinalis)
- कटुकी (Picrorhiza kurroa)
- अतिविषा (Aconitum heterophyllum)
- भारंगीमूल (Chlerodendron serratum)
- मूर्वा (Marsdenia tenacissima)
- वचा (Acorus calamus)
- त्रिफला
- गिलोय व दशमूल क्वाथ से शुद्ध गुग्गुलु (Commiphora wightii)
- वंग भस्म (Tin)
- रौप्य भस्म (Calcined silver)
- नाग भस्म (Lead)
- लौह भस्म (Iron)
- अभ्रक भस्म (Mica)
- मण्डूर भस्म (Iron slag)
- रससिन्दूर
इस योग को बृहत योगराज गुगगुलु के नाम से भी जाना जाता है।
विधि-
- सोंठ, पिप्पली, चव्य, पिप्पलीमूल, चित्रकमूल की छाल, हींग, अजवायन, पीली सरसों, जीरक, रेणुका, इन्द्रजौ, पाठा, वायविडंग, गजपिप्पली, कटुकी, अतिविषा, भारंगीमूल, मूर्वा, वचा प्रत्येक द्रव्य का कपड़छन चूर्ण 1-1 ग्राम लें।
- त्रिफला चूर्ण 10 तोला ~ 100 ग्राम लें।
- इन सबको रससिन्दूर के साथ खरल में अच्छी तरह घोंट लें।
- इसमें वंग भस्म, रौप्य भस्म, नाग भस्म, लौह भस्म, अभ्रक भस्म, मण्डूर भस्म– प्रत्येक 4-4 तोला (40-40 ग्राम) मिला दें।
- काष्ठौषधियां व भस्मों को घोंटकर, इसमें शुद्ध गुग्गुलु (15 तोला~ 150 ग्राम) मिलाकर, घी अथवा एरण्ड तैल के साथ 2-2 रत्ती की गोलियां बना लें।
◾मात्रा- 1-1 गोली प्रातः सायं लेें।
अनुपान-
- वातज विकारों में रास्ना, गिलोय, एरण्डमूल, दशमूल, प्रसारणी अथवा अजवायन क्वाथ से लें।
- पित्तज रोगों में जीवनीय गण की औषधियों के क्वाथ से, लालचन्दन, मुनक्का, कटुकी, खजूर, फालसा, जीवक अथवा ऋषभक के क्वाथ से लें।
- कफज रोगों की शान्ति के लिए त्रिकटु, गोमूत्र, नीम की छाल, पुष्करमूल, गिलोय, अजवायन अथवा पिप्पलीमूल आदि के क्वाथ से सेवन करें।
- व्रण, नासूर, ग्रन्थि, गण्डमाला, अर्बुद, प्रमेह में त्रिफला क्वाथ से लें।
- कण्डू, पिडिका के लिए दारुहल्दी व पटोलपत्र के करवाते से सेवन करें।
- जलोदर व किलास कुष्ठ के लिए हरीतकी, पुनर्नवा, दारुहल्दी, गोमूत्र और गिलोय के क्वाथ के साथ लेें।
- वातरक्त में गिलोय के क्वाथ से लें।
- मेदोवृद्धि में मधु से सेवन करें।
- पाण्डु रोग में गोमूत्र से लें।
- कुष्ठरोग में नीम की छाल के क्वाथ से लें।
- शोथ व शूल में पिप्पली के क्वाथ से लें।
- नेत्र रोग में त्रिफला क्वाथ से लें।
- उदर रोगों में पुनर्नवा क्वाथ से लें।
- सामान्य तौर पर उष्णोदक के साथ प्रयोग करे।
उपयोग :-
- आमवात
- कटी भग्न
- एक अंग शोथ
- कुष्ठ
- क्षत कुष्ठ
- ग्रधसी
- संधि वात
- क्रोष्टुशीर्ष
- कामला
- नेत्र रोग
- वातरक्त
- वीर्य दोष व रजोदोष
- अपस्मार
- सम्पूर्ण शरीर वात
- 80 वात रोग
- 40 पित्त रोग
- 20 कफ रोग
- त्रिदोषघ्न रसायन