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Vajra ( वज्र ) : हीरा, Diamond – Ratn Vargha

Name :-

संस्कृतवज्रम्
हिन्दीहीरा
EnglishDiamond (C)
  • Hardness= 10
  • Relative Density= 3.52

पर्याय :-

  • हीरक
  • हीर
  • भिदुर
  • कुलिश
  • वज्रक
  • भार्गवप्रिय
  • अभेद्य

परिचय :-

Vajra
  • वज्र (Vajra) श्वेतवर्ण का अत्यंत चमकदार रत्न है।
  • शुक्र ग्रह – प्रसन्न।
  • कोयले की खानों से प्राप्त।
  • इंद्रधनुषी रंग भिखेरने वाला
  • स्वच्छ, निर्मल और पारदर्शक होता है।
  • सबसे कठोर द्रव्य है।
  • Pure carbon.

प्राप्ति स्थान :-

  • Australia
  • Brazil
  • South Africa
  • Andhra pradesh
  • Uttar pradesh

हीरा की उत्त्पत्ति :-

  • पौराणिक दृष्टि से – दधीचि ऋषि की हड्डीयों से हुई है।
  • इंद्र का अस्त्र कहा गया है।

Types :-

On the basis of लिंग- वर्णजाति
1. नर वज्र : उत्तम (सबके लिए)1. श्वेत वज्र : सर्वसिधि दायक1. ब्राह्मण वज्र : रसायनार्थ
2. नारी वज्र : मध्यम (स्त्रियों के लिए)2. रक्त वज्र : मृत्यु नाशक2. क्षत्रिय : रोगनिवरणार्थ
3. नपुंसक वज्र : अधम (नपुंसकों के लिये)3. पीत वज्र : धनप्रद3. वैश्य : धातु कर्मार्थ
4. कृष्ण वज्र : स्तम्भक4. शुद्र : व्याधिनाशक

नर, नारी , नपुंसक हीरे के लक्षण:-

  • पुरुष हीरा (Vajra) =
  1. 8 धार
  2. 8 फलक
  3. 6 कोण
  4. बहुत चमकीला
  5. इन्द्रधनुष रंगों युक्त
  6. हल्का हीरा
  • स्त्री हीरा
  1. पुरुष हीरा यदि – चपटा वे गोल हो तो।
  • और यदि वही हीरा – कोण एवं धार से ग्रसित हो तो = नपुंसक हीरा

ग्राह्य वज्र लक्षण :-

  1. काँच के जैसा स्वच्छ
  2. लघु,
  3. 8 फलक
  4. 6 कोण
  5. तीक्ष्ण हो तो उत्तम माना जाता है।
  6. स्पर्श में स्निग्ध
  7. चमक -विद्युत् सदृश
  8. किसी चीज़ से न कटने वाला
  9. जो शीशे को काट सकता है
  10. अत्यंत तीक्ष्ण
  11. षट्कोण
  12. अष्ट फलक युक्त – श्रेष्ठ होता है।

अग्राह्य वज्र लक्षण :-

  1. मलिन
  2. नीलवर्ण
  3. राख के जैसे आभा वाला
  4. फटा हुआ
  5. खर
  6. कौए के पैर के समान वाला
  7. अनेक रेखा युक्त
  8. वर्तुलाकार

वज्र दोष एवं धारण से हानि :-

१. बिन्दु दोषजल बिन्दु जैसा काला, रक्त चिन्ह वाला, गोल एवं चपटा।
निष्फल एवं क्रेता का धन नाश करता है।
२.काकपद दोषकौए के पैर जैसे निशान हो
धारण कर लेने से मृत्यु।
३. यव दोषजौ के जैसे श्वेत, रक्त, पीत एवं कृष्ण वर्ण की आकृति
श्वेत बिन्दु वाला हीरा उत्तम।
४. मल दोषहीरे में धार एवं कोण के बीच यदि मैल दिखे।
धारण से अग्नि और व्याध्रादि का भय रहता है।
५. रेखा दोषचारों दिशाओं से काटती हुई रेखा से युक्त हीरा
वाम रेेेखा वाला उत्तम ।

वज्र शोधन :-

  • तण्डुलीय स्वरस में दोला यन्त्र में ➡3 घण्टे स्वेदन करने पर शुद्ध।

शोधन एवं मारण का प्रयोजन –

अशुद्ध सेवन करने पर – पार्श्व वेदना, ज्वर, कुष्ठ, पाण्डु, गुरुता, भ्रम।

वज्र मारण :-

शुद्ध हीरे (Vajra) के चूर्ण में + रस सिन्दूर + शुद्ध मनः शिला + शुद्ध गन्धक लेकर एक खल्व में

टिकिया बनाकर शराव सम्पुट गजपुट पाक करें

  • पहले पुट के बाद रस सिन्दूर को हटा कर शेष द्रव्यों के साथ ➡ मर्दन कर 14 दिन ➡ हीरे की भस्म बन जाती है।
  • श्वेतवर्ण भस्म प्राप्त।
Vajra bhasm
Vajra Bhasm

भस्म की मात्रा :-

1/32 – 1/16 रत्ती।

अनुपान :-

मधु

वज्र भस्म गुण :-

  • आयु बढ़ाने वाला।
  • त्रिदोषघ्न
  • बल्य
  • नेत्र्य
  • मेध्य
  • दीपन और सम्पूर्ण रोगनाशक।
  • प्रमेह, पाण्डु, उदर, भगन्दर रोगों को दूर करता है।

प्रमुख योग :-

  1. नवर्तनराजमृगाङ्गक रस
  2. कन्दर्पसुन्दर रस
  3. बसनत्सुकुमार रस
  4. महा मृगाङ्गक रस
  5. त्रैलोक्यचिन्तामणि रस।

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