नागरं पिप्पली मूल पिप्पली चव्य चित्रकौ।
भृष्टं हिङ्ग्वजमोदा च सर्षपो जीरकद्वयम्।
रेणुकेन्द्रयवाः पाठा विडङ्गं गजपिप्पली।।
कटुकातिविषा भाङ्गीं वचा मूर्वे त्रिभागतः।
प्रत्येकं शाणिकानि स्युर्दव्याणीमानि विंशतिः।।
द्रव्येभ्यः सकलेभ्यश्च त्रिफला द्विगुणा भवेत्।
एभिश्चूर्णीकृतैः सर्वैः समो देयश्च गुग्गुलुः।।
वनं रौप्यं च नागं च लोहसारस्तथाभ्रकम्।
मण्डूरं रससिन्दूरं प्रत्येकं पलसम्मितम्।।
गुडपाकसमं कृत्वा द्यादैतद् यथोचितम्।
एकपिण्डं ततः कृत्वा धारेयद् घृतभाजने।।
गुटिकाः शाणमात्रास्तु कृत्वा ग्राह्या यथोचिताः।
गुग्गुलुर्योगराजोऽयं त्रिदोषघ्नो रसायनः।।
मैथुनाहारपानानां त्यागो नैवात्र विद्यते।
सर्वान् वातामयान् कुष्ठान शासि ग्रहणीगदम्।।
प्रमेह वातरक्त च नाभिशूलं भगन्दरम्।
काक उदावर्त क्षयं गुल्ममपस्मारमुरोग्रहम् ।।
आरग मन्दाग्नि श्वासकासांश्च नाशयेदरुचिं तथा।
रेतोदोषहरः रजोदोष हरः स्त्रियाम्।।
पुंसा पुंसामपत्यजनको वन्ध्यानां गर्भदस्तथा।
रास्नादिक्वाथसंयुक्तो विविधं हन्ति मारुतम् ।
काकोल्यादिशृतात् पित्तं कफमारग्वधादिना।
मेहांश्च गोमूत्रेण च पाण्डुताम्।।
मेदोवृद्धिं च मधुना कुष्ठं निम्बशृतेन वा।
छिन्नाक्वाथेन वातास्त्रं शोथं शूलं कणाशृतात्।।
पाटलाक्वाथसहितो विषं मूषकजं जयेत्।
त्रिफला क्वाथ सहित नेत्रात् हन्ति दारुणम् ।। (शा. सं. मं.7/56-69)
सामग्री /Ingredients:-
- चित्रक
- पिप्पलीमूल
- अजवायन
- कृष्ण जीरा
- वायविडंग
- अजमोदा
- जीरा
- देवदारु
- चव्य
- छोटी इलायची
- सैंधव लवण
- कूठ
- रास्ता
- गोखरू
- धनिया
- हरीतकी
- विभीतकी
- आमलकी
- नागरमोथा
- सोंठ
- मिर्च
- पिप्पली
- दालचीनी
- खस
- यवक्षार
- तालीसपत्र
- तेजपत्र
- शुद्ध गुग्गुलु
विधि:-
सभी द्रव्यों का कपड़छन चूर्ण 1-1 तोला लें। इन सभी द्रव्यों के बराबर शुद्ध गुग्गुलु लेकर थोड़ा-थोड़ा घी व द्रव्यों चूर्ण मिलाकर कूट लें। जब सारा चूर्ण मिल अच्छी तरह मिल जाए तो 3-3 रत्ती की गोलियां बना लें।
मात्रा व अनुपान:-
2-4 गोली सुबह-शाम
- वात-विकारों में दशमूल क्वाथ के साथ।
- बल व शरीर पुष्टि के लिए गो-दुग्ध के साथ।
- वातरक्त में गोमूत्र अथवा गिलोय रस व मधु के साथ।
- उदर विकार में पुनर्नवा रस के साथ।
- शिरो रोग में गरम दुग्ध के साथ।
- मेद विकार में मधु के साथ।
- पित्त विकार में गिलोय या धनिया क्वाथ के साथ।
- कफ दोष में अश्वगन्धादि क्वाथ या पिप्पली क्वाथ के साथ।
गुण व उपयोग:-
- यह एक योगवाही रसायन है, जो धातुओं का पोषण, अग्नि दीपन तथा वात व आम दोष नाशक है।
- वात-विकार के लिए यह सर्वप्रसिद्ध औषध है।
- यह आमवात, गठिया, वातरक्त, भगन्दर, अरुचि, स्त्री-पुरुष के जननेन्द्रिय-विकार, कास–श्वास, धातुक्षीणता, बहुमूत्रता, प्रमेह, अर्श व शिरोरोग नाशक है।
- यह कोष्ठ बद्धता व प्रसव सम्बन्धित विकारों में लाभकारी है।
- वृद्धों के लिए अमृत तुल्य है।
- यह दूषी विष नाशक व बल व स्मृति वर्द्धक है।
- 2-4 वर्ष लगातार सेवन करने पर भी कोई हानि नहीं।
- यह गुग्गुलु (Yograj guggulu) उत्तम कृमि नाशक है।
- कुछ आचार्यों ने इसे त्रिदोषहर माना है।
- पित्त व रस को उत्पन्न करने वाले आशयों को योगराज नियमित करता है।
One reply on “Yograj guggulu | योगराज गुग्गुलु : Ingredients, Dosage, Uses”
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