Categories
Agad Tantra Syllabus

Scorpions | वृश्चिक विष : उत्पत्ति, काटने के लक्षण, चिकित्सा

आयुर्वेद अनुसार वृश्चिक विष (Scorpions) को कीट विष के अंतर्गत माना है। आचार्य सुश्रुत ने इसे पित्त दोष प्रकोपक कहा है। वृश्चिक की उत्पत्ति – “त्रिविधा वृश्चिकाः प्रोक्ता मन्दमध्यमहाविषाः ।।” (सु.क.8/५६) बिच्छू तीन प्रकार के कहे गए है- मन्द विष वृश्चिक मध्य विष वृश्चिक महा विष वृश्चिक “गोशकृत्कोथजा मन्दा मध्याः काष्ठेष्टिकोद्भवाः। सर्पकोथोद्भवास्तीक्ष्णा ये चान्ये विषसंभवाः […]

Categories
Agad Tantra Syllabus

Scorpion Sting : What to do, Signs and Symptoms, Treatment

Nomenclature:- Kingdom Animalia Phylum Arthropoda Class Arachnida Order Scorpiones Scorpion is a poisonous insect with a crab like body with 8 legs. It carries: a cephalothorax an abdomen and a 6 segmented tail which terminates in a bulbous enlargement called telson. The telson contains the stinger and venom apparatus. It has 2 claws which help […]

Categories
Gugulu

Vyadhishardul Guggulu | व्याधिशार्दूलगुग्गुलु Ingredients, Benefits

त्रिफलायाः पलान्यष्टी प्रत्येकं बीजवर्जितम् । कटुतैलं द्विपलं च गुग्गुलुं दोलाशोधितम् ॥१६८॥ साद्धांढकजले पक्त्वा पादशेरषं पुनः पचेत् चूर्णीकृत्य क्षिपेत्सिद्धे पृथक्कर्षाद्दसम्मितम् ॥१६९। त्रिकटुत्रिफलामुस्तं विडङ्गामलकानि च गुइच्यग्नित्रिवृद्न्ती चवीशूरणमाणाकम् ॥१७०। सार्ध्दशतदव्यं दद्याच्चुर्णितं कानकं फलम् रसगन्धकलौहाभ्रं प्रत्येकं कर्षसम्मितम्॥१७२। ततो माषद्वयं जग्ध्वा प्रातरुष्णोदकं पिबेत् । अग्निं च कुरुते दीप्तं वयोबलविवर्द्धनम् ॥१७२॥ अशोऽश्परीमूत्रकृच्छु शिरोवाताम्लपित्तनुत् कार्स पञ्चविध श्वास दाहोदरभगन्दरम् ॥१७३॥ शीथान्त्रवृद्धितिमिर्रं श्लीपदं प्लीहकामलम् […]

Categories
Gugulu

Trikantakadi Guggulu | त्रिकण्टकादि गुग्गुलु : Ingredients, Uses

Meaning behind its Name :- गोक्षुर का एक नाम ‘त्रिकंठक’ है और सर्व प्रथम इस योग में गोक्षुर ( त्रिकंठक ) का उपयोग है उसके बाद में अन्य द्रव्य इसलिए इस योग का नाम त्रिकण्टकादि गुग्गुलु (Trikantakadi Guggulu) हुआ है। यह योग विशेष रूप से वीर्य रोग ( 8 ) में उपयोग में आता है। […]

Categories
Sushrut Samhita

Agnikarma | अग्निकर्म : Types, Procedure, Benefits, Uses

अग्नि के द्वारा किया गया कर्म अग्निकर्म (Agnikarma) कहलाता है। अग्निकर्म का महत्त्व / Importance of Agnikarma:- क्षारादग्निर्गरीयान् क्रियासु व्याख्यातः, तद्दग्धानां रोगाणामपुनर्भावाद्धेषजशस्त्रक्षारैरसाध्यानां तत्साध्यत्वाच्च ।। (सु. सू. अ. १२/३) दहन क्रियाओं में क्षार की अपेक्षा अग्नि उत्तम मानी गई है क्योंकि अग्नि से जले हुए रोगों की फिर से उत्पत्ति नहीं होती है। जो रोग औषध, […]