त्रिफलायाः पलान्यष्टी प्रत्येकं बीजवर्जितम् । कटुतैलं द्विपलं च गुग्गुलुं दोलाशोधितम् ॥१६८॥ साद्धांढकजले पक्त्वा पादशेरषं पुनः पचेत् चूर्णीकृत्य क्षिपेत्सिद्धे पृथक्कर्षाद्दसम्मितम् ॥१६९। त्रिकटुत्रिफलामुस्तं विडङ्गामलकानि च गुइच्यग्नित्रिवृद्न्ती चवीशूरणमाणाकम् ॥१७०। सार्ध्दशतदव्यं दद्याच्चुर्णितं कानकं फलम् रसगन्धकलौहाभ्रं प्रत्येकं कर्षसम्मितम्॥१७२। ततो माषद्वयं जग्ध्वा प्रातरुष्णोदकं पिबेत् । अग्निं च कुरुते दीप्तं वयोबलविवर्द्धनम् ॥१७२॥ अशोऽश्परीमूत्रकृच्छु शिरोवाताम्लपित्तनुत् कार्स पञ्चविध श्वास दाहोदरभगन्दरम् ॥१७३॥ शीथान्त्रवृद्धितिमिर्रं श्लीपदं प्लीहकामलम् शूलगुल्मक्षयं कुष्ठं सपाण्डं विषमज्वरम् ॥१७४ ॥ जानुजङ्कासुप्तपादगतं वातं कटीग्रहम् ।हन्ति चान्यान्कफोत्थां शच आमवातं विशेषतः ॥ व्याधिशार्दूलको नाम्ना गुग्गुलु परिकीर्तितः ॥१७५॥ ( भ. रत्नावली )
Ingredients of Vyadhishardul guggulu:
- आंवला (Phyllanthus emblica) – 125 ग्राम
- हरीतकी (Terminalia chebula) – 125 ग्राम
- बहेड़ा (Terminalia bellirica)- 125 ग्राम (गुठली बिना)
- सरसों तैल (Mustard oil) – 93 मि.ली.
- शुद्ध गुग्गुलु (Commiphora wightii) – 93 ग्राम
- क्वाथार्थ जल – 4500 मि.ली.,
- अवशेष क्वाथ – 1125 मि.ली.
प्रक्षेप द्रव्य :-
- सोंठ चूर्ण (Zingiber officinale)
- पीपरचूर्ण (Piper longum)
- मरिचचूर्ण (Piper nigrum)
- आमलाचूर्ण (Phyllanthus emblica)
- हरीतकीचूर्ण (Terminalia chebula)
- बहेड़ा चूर्ण (Terminalia bellirica)
- नागरमोथा चूर्ण (Cyperus scariosus)
- वायविडङ्ग चूर्ण (Embelia ribes)
- आमला चूर्ण (Phyllanthus emblica)
- गुडूची चूर्ण (Tinospora cordifolia)
- चित्रक चूर्ण (Plumbago zeylanica)
- निशोथ चूर्ण (Operculina turpethum)
- दन्तीमूल चूर्ण (Baliospermum montanum)
- चव्य चूर्ण (Piper retrofractum)
- सूरणकन्द चूर्ण
- मानकन्द चूर्ण
प्रत्येक को 6 ग्राम लें।
- शुद्ध जयपालबीज (Croton tiglium) -250 नग
- लौहभस्म (Iron) – 12 gram
- शुद्ध पारद (Pure Mercury) – 12 gram
- अभ्रकभस्म (Mica) – 12 gram
- शुद्ध गन्धक (Pure Sulphur) – 12 gram
विधि / How to make Vyadhishardul guggulu:
- सर्वप्रथम एक खरल में पारद एवं गन्धक को खरल कर अच्छी कज्जल बना ले।
- अब एक हाँडी में त्रिफला यवकुट 375 ग्राम और जल 4500 मि.ली. डालकर क्वाथ करें। जब चौथाई क्वाथ शेष रहे तो उतारकर छान लें।
- अब लोहे की एक छोटी कड़ाही में उपर्युक्त त्रिफलाक्वाथ एवं गुग्गुलु और सरसों तेल मिलाकर आग पर गरम करें।
- जब शुद्ध गुग्गुलु उसमें घुल जाय और क्वाथ भी थोड़ा शेष रहे अर्थात् लप्सी जैसा हो जाय तो चूल्हे से नीचे उतारकर त्रिकटु से मानकन्द तक के सभी चूर्णों को उस द्रवित गुग्गुलु की कड़ाही में छिड़ककर अच्छी तरह से चला दें।
- शुद्ध जयपालबीजचूर्ण भी उसी में छिड़क दें ।
- कज्जली एवं भस्मादि भी मिलाकर उस गुग्गलु में मिला दें और बड़ी चम्मच से अच्छी तरह से मिलाने के बाद 250 मि.ग्रा. की वटी बना लें और छाया में सुखाकर काचपात्र में संग्रहीत करें।
मात्रा / Dosage:
- अग्निबल एवं शारीरिक बलानुसार 4 से 8 रत्ती की मात्रा में उष्णोदक से सेवन करें।
- 1/2 – 1 ग्राम।
उपयोग / Therapeutic Uses:
व्याधिशार्दूलगुग्गुलु (Vyadhishardul guggulu) के सेवन से अग्नि प्रदीप्त होती है, बल की वृद्धि होती है।
- अर्श,
- अश्मरी,
- मूत्रकृच्छ,
- शिरोवात,
- अम्लपित्त,
- 5 प्रकार के कास,
- दाह,
- उदररोग,
- भगन्दर,
- शोथ,
- अन्ववृद्धि,
- तिमिर,
- श्लीपद,
- प्लीहा,
- कामला,
- गुल्म,
- शूल,
- क्षय,
- कुष्ठ,
- पाण्डु,
- विषम ज्वर,
- जानु-जंघा-हस्त-पादगत वातरोग,
- कटिग्रह और
- कफज रोगों को यह नाश करता है।
- विशेषकर आमवात को यह गुग्गुलु (Vyadhishardul guggulu) नष्ट करता है।