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Adhimantha | अधिमंथ : Glaucoma – Symptoms, Treatment

Adhimantha also known as Glaucoma, is a group of conditions that have a characteristic optic neuropathy associated with visual field defects and elevated intraocular pressure.

संहिताओं में इसका वर्णन निम्न आचार्यों ने किया है:-

  • सुश्रुत संहिता उत्तरतंत्र
    • 6 (सर्वगतरोगविज्ञानीयध्याय)
    • 9 (वाताभिष्यन्द- अधिमन्थप्रतिषेध)
    • 10 (पित्ताभिष्यन्दप्रतिषेध)
    • 11 (श्लेष्माभिष्यन्दप्रतिषेध)
    • 12 (रक्ताभिष्यन्दप्रतिषेध)
  • अष्टांग हृदय उत्तरतंत्र – 15

“वृद्धैरेतैरभिष्यदैर्नराणामक्रियावताम् । तावन्तस्त्वधिमन्थाः स्युर्नयने तीव्र वेदनाः॥” (सु.उ.त. 6/10)

मिथ्या आहार-विहार का सेवन करने वाले मनुष्यों में अभिष्यन्द रोग के बढ़ने पर अधिमन्थ (Adhimantha) रोग होता है तथा में नेत्र में तीव्र पीड़ा होती है।

सामान्य लक्षण:-

“उप्पाट्यत इवात्यर्थं नेत्र निर्मथ्यते तथा । शिरसोऽर्द्ध य तं विद्यादधिमन्थं स्वलक्षणैः ॥” (सु.उ.त. 6/11)

  • अधिमंथ में ऐसा प्रतीत होता है कि मानो आंख निकाली जा रही हो।
  • नेत्र में मथनी से मंथन सदृश पीड़ा होती है ।
  • सिर के आधे भाग में तीव्र वेदना होती है।

अधिमन्थ के भेद:-

  • वाताधिमन्थ
  • पित्ताधिमंथ
  • कफाधिमन्थ
  • रक्ताधिमन्थ

वातज अधिमन्थ :

“नेत्रमुत्पाट्यत इव मथ्यतेऽरणिवच्च यत् । संघर्षतोदनिर्भेद मांस संरब्धमाविलम्॥” (सु.उ.त. 6/12)

  • वात से होने वाले अधिमंथ रोग से नेत्र भीतर से उखाड़ा जाता हो ऐसा प्रतीत होता है।
  • नेत्र में अरणी के मन्थन करने के समान पीड़ा होती है।
  • नेत्र में सङ्घर्ष, सुई चुभोने की सी पीड़ा & नेत्र में शस्त्र द्वारा विदारण करने के समान वेदना।
  • नेत्रगत मांस में संरब्धता (मांस शून्यता)
  • नेत्र का मल से व्याप्त रहना, नेत्र में संकोच, आस्फोटन, आध्मान, वेपथु
  • सिर के आधे भाग में तीव्र वेदना होती है।
  • कर्णनाद, चक्कर आना, अरणी मंथन के समान ललाट, आंख,भ्रू में वेदना। [अ.हृ.उ. 15/ 3-4]

पित्तज अधिमन्थ :

“रक्तराजिचितं स्रावि वह्निनेवावदह्यते यकृतपिण्डोपमं दाहि क्षारेणाक्तमिव क्षतम्॥ प्रपक्वोच्छूनवर्त्मान्तं सस्वेदं पीतदर्शनम् । मूर्च्छाशिरोदाहयुतं पित्तेनाक्ष्यधिमन्थितम्।।” (सु.उ.त. 6/ 14-15)

  • नेत्र लाल वर्ण की रेखाओं में व्याप्त हो गया हो,
  • स्त्राव निकलता हो, अग्नि से जलने के समान दाह होता हो।
  • नेत्र गोलक यकृत का पिण्ड के समान गहरे ताम्रवर्ण का हो गया हो।
  • क्षार से लिप्त क्षत में जलन होने के समान जलन,
  • वर्त्म के प्रान्त भाग पके हुए तथा शोथ युक्त दिखाई देते हैं पसीना आता हो,
  • रोगी को सब वस्तुएं पीली दिखाई देती हों
  • कभी-कभी मूर्च्छा और सिर में दाह होता है।
  • आंख जलते हुए अंगारों से भरी तथा यकृत पिण्ड के समान नेत्र की कांति। [अ.हृ.उ. 15/9]

कफज अधिमन्थ :

“शोफवन्नतिसंरब्धं स्रावकण्डूसमन्वितम् । शैत्यगौरवपैच्छिल्यदूषिकाहर्षणान्वितम्॥ रुपं पश्यति दुःखने पांशुपूर्णमिवाविलम्। नासाध्मानशिरोदुःखयुत श्लेष्माधिमन्थितम्।।” (सु.उ.त. 6/ 16-17)

  • जिस रोगी का नेत्र शोफ के समान अत्यधिक दाह, राग और वेदना से युक्त न हो।
  • किंतु स्राव, कण्डू, शैत्य, गौरव, पैच्छिल्य, दूषिका (नेत्रमल) और हर्षण से युक्त हो।
  • रोगी को धूलि से व्याप्त प्रत्येक पदार्थ कष्ट से दिखाई देते हो।
  • नेत्र गंदले हों साथ ही नासा में आध्मान और सिर में वेदना का अनुभव होता हो।
  • वाग्भट्ट मतानुसार कफज अधिमंथ में कृष्ण भाग दबा हुआ और शुक्ल भाग ऊपर को उठा हुआ।
  • नेत्र से निरंतर स्त्राव
  • नासिका रुकी हुई सी
  • आंख धूलि पूर्ण प्रतीत होती है। [अ.हृ.उ.15/11]

रक्तज अधिमंथ :

“बन्धुजीवप्रतीकाशं ताम्यति स्पर्शनाक्षमम्। रक्तास्रावं सनिस्तोदं पश्यत्यग्निनिभा दिशः॥रक्तमग्नारिष्टवच्च कृष्णभागश्च लक्ष्यते ॥ यद्दीप्तं रक्तपर्यन्तं तद्रक्तेनाधिमन्थितम्।।” (सु.उ.त. 6/ 18-19)

  • जिस रोगी के नेत्र बंधु जीव (जपा पुष्प) के समान लाल वर्ण युक्त हों।
  • रोगी घबराता हो एवं उसके क्षेत्र स्पर्श करने से पीड़ा जनक हों,
  • नेत्रों से रक्त या रक्तवर्ण का स्त्राव निकलता हो।
  • सूई चुभने की सी पीड़ा प्रतीत हो
  • रुग्ण को सब दिशाएं अग्नि से जलती हुई दिखती हों, रोगी का कृष्ण भाग रक्त में डूबे हुए रीठे सदृश दिखाई देता हो।
  • नेत्र दीप्त हों तथा उनके आस पास लालिमा दिखाई देती हो।
  • आंख के किनारे लाल वर्ण, उखाड़ने के समान वेदना।
  • नेत्र दोपहरिया फूल की तरह लाल वर्ण का,
  • आंखों के सामने अंधेरा छा जाता।
  • नेत्र स्पर्श सहन नहीं कर सकता।
  • कृष्ण भाग रक्त नीम में भिगोए रीठे के फल सदृश तथा सभी वस्तुएं अग्नि वर्ण सदृश। [अ.ह.उ. 15/ 13-15]

अधिमंथ की चिकित्सा:-

आ.सुश्रुत ने अधिमंथ की उत्पत्ति का कारण अभिष्यंद को माना है तथापि इसकी चिकित्सा अभिष्यंद के समान की जाती है।

वातज अधिमंथ चिकित्सा:

“पुराणसर्पिषा स्निग्धौ स्यन्दाधीमन्थपीड़ितौ।स्वेदयित्वा यथान्यायं सिरामोक्षेण योजयेत् ॥”(सु.उ. 9/3)

  • अभिष्यन्द और अधिमन्थ (Adhimantha) रोग से पीड़ित रोगी में प्रथम पुराण घृत से स्नेहन कर्म करके स्वेदन करें पश्चात् उपनासिका, ललाट अथवा अपाङ्ग – प्रदेश की सिरा का यथान्याय से वेधन करके रक्तमोक्षण करना चाहिए।
  • “सम्पादयेद्वस्तिभिस्तु सम्यक् स्नेहविरेचितौ । तर्पण पुटपाकैश्च धूमैराश्च्योतनैस्तथा। नस्य स्नेहपरी वे कै का शिरो बस्तिभिरेव चा ।।” (सु.उ. 9/4)
  • स्नेहपान कराके विरेचन देना चाहिए। विरेचन के अनन्तर स्नेहवस्ति अथवा निरुह बस्ति से चिकित्सा करनी चाहिए।

पित्तज अधिमंध चिकित्सा:

पितस्यन्दे पैत्तिके चाघिमन्थ रक्तस्त्राव: स्त्रसनञ्चपि कार्यम्। अक्ष्णोः से कालेप नस्याञ्जनानि पैत्ते च स्याधद्विसर्वे विधानम् ॥” (सु.उ. 10/3)

  • पित्तजन्य अभिष्यन्द तथा पित्तजन्य अधिमन्थ रोग में रक्तविस्त्रावण तथा विरेचन आदि सार्वदैहिक उपक्रम एवं स्थानिक उपचारों में पितजन्य विसर्प के समान सेक , आलेप, नस्य उपाय करने चाहिए।
  • सुवर्ण को स्त्री के दुग्ध के साथ घिसकर किंवा किशुक (ढाक = पलास) के पुष्पों को चूर्णित कर
  • शहद के साथ मिला कर अञ्जन करना चाहिए।

श्लेष्माधिमंथ चिकित्सा:

“स्यन्दाधिमन्थौ कफजौ प्रवृद्धौ जयेत् सिराणामथ मोक्षणेन। स्वेदावपीडाञ्जनधूमसेकप्रलेपयोगै: कवलग्रहैक्ष्च।।” “रूक्षैस्तथाऽक्ष्चयोतनसंविधानैस्तथैव रूक्षै: पुटपाक योगै:।त्र्यहात्यहाच्चाप्यपतर्पणान्ते प्रातस्तयोस्तिकघृतं प्रशस्तम्।।” (सु.उ.त. 11/ 3-4)

  • कफ की वृद्धि से उत्पन्न अभिष्यन्द तथा अधिमन्थ रोगों को प्रथम सिरामोक्षण करें।
  • रक्तमोक्षण के पश्चात् स्वेदन, अवपीडन नस्य, अञ्जन, धूमपान, सेक, प्रलेप, कवल ग्रह, कवलग्रह,
  • रूक्ष औषधियों से बने क्वाथादि का आश्च्योतन,
  • रूक्ष औषधियों प्रयोग का पुटपाक और अपतर्पण का प्रयोग करना चाहिए।
  • अपतर्पण के अनन्तर 3-3 दिन के पश्चात् प्रातः काल कुष्ठाधिकारोक्त तिक्त घृत का पान करना चाहिए।

रक्ताधिमंथ चिकित्सा:

“मन्थं स्यन्द सिरोत्पातं सिराहर्षञ्च रक्तजम्।एकैकेन विधानेन चिकित्सेच्चतुरो गदान।” “व्याध्यार्त्ताश्चतुरो ऽप्येतान् स्निग्धान् कौम्भेन सर्पिषा।रसैरूदारेथवा सिरामोक्षेण योजयेत् ॥” (सु.उ.त. 12/ 3-4)

  • रक्त की दुष्टि से उत्पन्न अधिमंथ, अभिष्यन्द, सिरोत्पात तथा सिराप्रहर्ष; इन चार रोगों की चिकित्सा एक ही प्रकार के क्रम से करें।
  • प्रथम कौम्भ घृत के पान के द्वारा अन्तः संशोधनार्थ स्नेहन करके अधिक मांसरस का सेवन कराए।
  • सिरामोक्षण द्वारा अशुद्ध रक्त का निर्हरण करें।
  • वातादि दोषों के विनाश के लिए त्रिवृतादि विरेचक द्रव्यों के कल्क तथा क्वाथ द्वारा सिद्ध किए हुए घृत में शर्करा डालकर विरेचन देना चाहिए।

साध्यासाध्यता:-

“हन्याद् दृष्टि सप्तरात्रात् कफोत्थोऽधीमन्थोऽसृक्सम्भवः पञ्चरात्रात्।षडरात्राद्वै मारुतोत्थो निहन्यान्मिथ्याचारात् पैत्तिकः सद्य एव॥” (सु.उ.त. 6/20)

  • चिकित्सा न करने से कफज अधिमन्थ = 7 दिन में,
  • रक्तज अधिमन्थ = 5 दिन में,
  • वातज अधिमन्थ = 6 दिन में तथा
  • पित्तज तत्काल ही दृष्टि को नष्ट कर देता है।

अधिमन्थ (Adhimantha) की तुलना Glaucoma से की जा सकती है।

Glaucoma

Definition:-

Glaucoma is not a single disease process but a group of disorders characterized by a progressive optic neuropathy resulting in a characteristic appearance of the optic disc & a specific pattern of irreversible visual field defects associated with raised Intraocular pressure (IOP).

  • In absence of treatment, it leads to visual disabilities and eventual blindness.
  • It is a symptomatic condition of eye where the IOP is more than normal (above 25 mm Hg).
  • Normal IOP = 10 – 21 mmHg.
  • Aqueous humour flow in human follows cardiac rhythm being higher in morning than at night.
  • Aqueous humor leaves the eye by passive flow via two pathways -trabecular meshwork and Uveoscleral pathway .
  • In humans, 75% of the resistance to aqueous humour outflow is localized within TM; so the uveoscleral outflow pathway is relatively independent of the intraocular pressure and the proportion of aqueous humour exiting the eye via the Uveoscleral Pathway decreases with age.
Adhimantha

Epidemiology:-

Global =

  • About two percent of those over the age of 40 years years.
  • About 10% of those over the age of 80 years.

Glaucoma blindness =

  • Global – 8%.
  • India – 12.8%

Etiology:-

  • Raised intraocular pressure.
  • When the rate of inflow is greater than rate of outflow, IOP can rise above the normal limits. If IOP remains elevated, permanent vision loss occurs.
  • Pressure independent factors (vascular insufficiency theory).
  • Factors like
    • failure of auto regulatory mechanism of blood flow.
    • Systemic hypertension.
    • Vasospasm.
    • Other factors such as acute blood loss and abnormal coagulability profile.

Classification:-

  1. Congenital/ Developmental glaucoma
    1. Primary congenital/ developmental glaucoma
    2. Secondary congenital / developmental glaucoma
  2. Acquired glaucoma
    1. Primary glaucoma
      1. 1⁰ open angle glucoma (POAG).
      2. 1⁰ angle closure glaucoma (PACG).
      3. Primary mixed mechanism glucoma.
    2. Secondary glaucoma.

Primary congenital Glaucoma=

PCG refers to abnormally high IOP. Depending upon the age of onset the developmental glaucoma are termed as-

  1. Newborn glaucoma– also called as true congenital glaucoma. When IOP is raised during intrauterine life. About 40% cases involved.
  2. Infantile glaucoma– when the disease manifests prior to the child’s third birthday. About 55% cases involved.
  3. Juvenile glaucoma- girls between 10 to 35 years of age.

Clinical features-

  • Lacrimation, photophobia and Blepharospasm.
  • Corneal signs- include its oedema enlargement and descemet’s breaks.
  • Sclera becomes thin and appear blue
  • IOP is raised.
  • Lens becomes antero-posteriorly flat.

Treatment-

  • Medications are not very effective. So treatment is primarily surgical.
  • Surgical procedure- incisional angle surgery can be performed by the internal approach.
  • Goniotomy or by external approach trabeculectomy.

Secondary developmental glaucoma=

2⁰ are those where other ocular or systemic anomalies are also associated.

Primary open-angle glaucoma=

  • Also known as chronic simple glaucoma.
  • Characterized by– Slowly progressive raised IOP.
  • Open normal appearing interior chamber angle.
  • Optic disc cupping and specific visual field defects.

Etiology-

  • The etiology of POAG is not known exactly.
  • Pre- disposing factors include-
    • Heredity-risk of getting disease is 10% in the siblings and 4% in the off spring of patients with POAG.
    • Age- risk increases with increasing age.
    • Diabetes
    • Cigarette smoking
    • IOP– most important risk factor for development of POAG .

Incidence-

It affects 1 in 100 of general population above age of 40 years.

Fluid pathway in open angle Glaucoma (Adhimantha)
Fluid pathway in open angle Glaucoma (Adhimantha)

Clinical features-

  • Symptoms=
    • Headache and eye ache of mild intensity.
    • Difficulty in reading and close work.
    • Significant loss of vision and blindness in the end result of untreated cases of POAG.
    • Delayed dark adaptation may develop.
  • Signs=
    • Anterior segment signs- ocular examination including slit-lamp biomo microscope may reveal normal anterior segment.
    • IOP changes-
      • Morning rise in IOP- 20% cases
      • Afternoon rise in IOP- 25% cases.
      • Biphasic rise in IOP- 55% cases.
      • In later stages, IOP permanently raised about 21 mmHg and ranges between 30 and 45 mmHg.
    • Bayonetting Sign– nasal shifting of retinal vessels.

Investigations-

Tonometry Adhimantha
Tonometry
  • Tonometry – for IOP.
  • Perimetry– to defect the visual field defects.
  • Gonioscopy – reveals wide open angle of anterior chamber.
Goniometry Adhimantha
Goniometry

Diagnosis-

  1. POAG- is labelled when raised IOP (>21mmHg) is associated with definite glaucomatous optic disc cupping and visual field changes.
  2. Ocular Hypertension- this term used when a patient has an IOP. Constantly more than 21 mmHg but no optic disc and visual field changes.

Management-

Aim of treatment is to lower the intraocular pressure to a level where further visual loss does not occur.

Primary Closed Angle Glaucoma=

In this PACG, intraocular pressure is raised as a result of obstruction to the outflow of the aqueous humour by closure of narrower angle of the anterior chamber.

Pre-disposing factor-

  • Common in fifth-sixth decade.
  • Usually the hypermetropic eye with shallow interior chamber.
  • Women are more prone than males.
  • Usually bilateral.
  • Most common in anxious person with unstable vasomotor system.
Fluid pathway in Closed angle Glaucoma (Adhimantha)
Fluid pathway in Closed angle Glaucoma

Classification-

Shaffer’s grade system:

  • Angle closed ➡️ Grade 0
  • Extremely narrow angle ➡️ Grade 1
  • Moderate narrow angle ➡️ Grade 2
  • Mild narrow angle ➡️ Grade 3
  • Wide open angle ➡️ Grade 4

Depending upon angle-

  • Primary angle closure suspect
    • Symptoms are absent in this stage.
  • Sub-acute PACG
    • Transient rise of IOP which may last for few minutes to 1-2 hours.
    • Headache, brow ache and eyeache.
  • Acute PACG
    • Severe form.
    • Sudden closure of the angle.
    • Site= threatening emergency.
  • Chronic PACG
    • Progressively angle closure and raised IOP.
    • Headache and eyeache.
  • Absolute PACG
    • Eye becomes painful and blind.
    • Eyeball stony hard.
    • Anterior chamber is very shallow and IOP is very high.

Secondary glaucoma=

Increased IOP occuring as one manifestation of some other eye disease is called secondary glucoma.

Classification –

  • Depending upon mechanism in rise of IOP-
    • Secondary open angle glaucoma.
    • Secondary angle closure glaucoma.
  • Depending upon the causative primary disease-
    • Neo vascular glaucoma.
    • Steroid induced glaucoma.
    • Inflammatory glaucoma.
    • Pigmentory glaucoma.
    • Traumatic glaucoma.
    • Lens induced glaucoma.

Pathophysiology:-

  • IOP is a function of production of liquid aqueous humour by ciliary processes of the eye and its drainage through the trabecular meshwork.
  • Aqueous humour is produced by cilliary body and flow into posterior chamber behind the iris.
Development of Glaucoma, Adhimantha
Development of Glaucoma

Diagnosis:-

  • Visual acuity testing – by Snellen’s chart.
  • Slit lamp examination
  • Gonioscopy
  • Tonometry
  • Fundoscopy
Snellen's Chart
Snellen’s Chart

Differential Diagnosis:-

  • Ulcerative Keratitis.
  • Iritis and uveitis.
  • Corneal abrasion.
  • Conjunctivitis.

Complications:-

  • If left untreated, it can lead to vision impairment and blindness.
  • A loss of Central or peripheral vision.
  • Chronic eye pain.
  • Blindness or changes in vision.

Treatment:-

  • Aim is to lower the intraocular pressure.
  • Maintain vital functions.

Single drug therapy-

  • Topical beta blockers= First drug of choice for medical therapy of POG in poor and average income patient.
    • Timolol maleate
    • Betaxolol
    • Levabunolol
    • Dose= 1 to 2 drops per day.
  • Pilocarpine = 4 times/day.
  • Latanoprost = 1-2 drops/day.
  • Dorzolamide = 2-3 drops/day
  • Adrenergic drugs=
    • Brimonidine = 2 drops/day.
    • Dipivefrine hydrochloride = 1-2 times/day.
  • Role of oral carbonic anhydrase inhibitors in POAG, acetazolamide and methazolamide are not recommended for long term because of their side effects.

Incisional Surgery-

  • Filtration surgery– It provides an alternative to the angle for drainage of aqueous from anterior chambers into subconjuctival space.
  • Trabeculectomy– most frequently performed partial thickness filtering surgery.
  • Mechanism
    • A new channel (fistula) is created around the margin of scleral flap, through which aqueous flows from anterior chamber into the subconjunctival space.
    • If the tissue is dissected posterior to the scleral spur, a cyclodialysis maybe produced leading to increased uveoscleral outflow.
    • When trabeculectomy was introduced, it was thought that aqueous flow through the cut ends of Schlemm’s Canal. However, now it is established that this mechanism has a negligible role.
    • Surgical technique-
    • Initial steps= Anaesthesia, cleansing, drapping, exposure of eyeball and fixation with superior rectus suture.
    • Conjunctival flap= fornix based or limbal based flap is fashioned and underlying sclera is exposed.
    • Scleral flap= A partial thickness limbal based scleral flap of 5 mm* 5 mm size is reflected down towards cornea.
    • Excision of trabecular tissue= a narrow strip 4 mm* 2 mm of exposed deeper sclera near the cornea containing the Canal of Schlemm and trabecular meshwork is excised.
    • Peripheral iridectomy= is performed at 12 o’clock position with the Dewecker’s scissors.
    • Closure= the scleral flap is replaced and 10-0 nylon sutures are applied then the conjunctival flap is reposited and sutured with two interrupted sutures or continuous suture.
    • Subconjunctival injection of dexamethosone and gentamicin are given.
    • Patching= eye is patched with a sterile eyepad and sticking plaster or a bandage.
Trabeculectomy in Adhimantha
Trabeculectomy
  • Aqueous flow reconstruction surgery=
    • Trabeculoplasty.
    • Goniotomy.
  • Cyclo destructive surgery.