अणु तेल (Anu tail) शरीर में सूक्ष्म से सूक्ष्म स्त्रोतों में जाकर रोगों को नष्ट करता है। अणु तेल को नस्य (Nasya treatment) {Nasya refers to nasal instillation of drops of the oil} में और इंद्रियों को बल प्रदान करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इसका सबसे बड़ा असर बाहरी संक्रमण को शरीर के […]
Category: Astang Hridya
This section has post useful for B.A.M.S 1st year or related for Astang Hridya. Astang Hridya is the second book or treatise by Acharya Vaghbhatt after Asthang Sanghra, Acharya praised his treatise by after reading this can start treatment and doesn’t need to wait and study other books.
आयुर्वेद के आठ अंगों को अष्टांग आयुर्वेद (Astang Ayurved) भी कहा जाता है। कायबालग्रहोर्ध्वाङ्गशल्यदंष्ट्राज़रावृषान् । अष्टावङ्गानि तस्याहुश्चिकित्सा येषु संश्रिता ।। (अ. हृ. सू १/५) काय चिकित्सा बाल चिकित्सा ग्रह चिकित्सा / भूत विद्या ऊर्ध्वजत्रुगत चिकित्सा / शालाक्य चिकित्सा शल्य चिकित्सा दंष्ट्रा चिकित्सा/ अगद / विष चिकित्सा जरा चिकित्सा / रसायन वृष्य / वाजीकरण तस्यायुर्वेदस्याङ्गान्यष्टौ, तद्यथा-कार्यचिकित्सा, […]
वमन तथा विरेचन के पश्चात् संसर्जन क्रम अथवा तर्पणादि क्रम / Sansarjan and Tarpanaadi Kram (कोष्ठ व दोष का विचार कर) का पालन करना चाहिए। संशोधनास्त्रविस्त्रावस्नेहयोजनलङ्घनैः।। यात्यग्निर्मन्दतां तस्मात् क्रमं पेयादिमाचरेत् । (अ. हृ. सू. १८/४५) संशोधन, रक्तमोक्षण, स्नेहपान और लंघन इन कार्यों से अग्नि मंद हो जाती है, इसलिए पेया-विलेपी आदि के क्रम (Sansarjan and […]
शब्द उत्पत्ति – वि + रिच् + णिच् + ल्युट् । ‘विरेचन’ (Virechan) का अर्थ है – मलादि को निष्कासित करना। आचार्य चरकानुसार :- तत्र दोषहरणमूर्च्व भागं वमन संज्ञकम, अधोभाग विरेचन संज्ञक; उभयं वा शरीरमलविरेचनाद्विरेचन संज्ञा लभते।। (च॰ क॰ अ॰ १/४) What is Virechan ? अधोमाग (गुदा) से दोष-हरण की क्रिया को विरेचन (Virechan) संज्ञा […]
नस्य (Nasya) शब्द निष्पत्ति :- भावप्रकाश ने नासा मार्ग से औषध ग्रहण करने को नस्य (Nasya) कहा है। अरुण दत्त के द्वारा कहा गया है कि नासिका से नस्य दिया जाता है। ‘नस्य’ शब्द का अर्थ है – जो नासा (नाक) के लिए हितकारी है। उर्ध्वजत्रुविकारेषु विशेषान्नस्यमिष्यते। नासा ही शिरसो द्वारं तेन तद्व्याप्य हन्ति तान्। […]
1. स्वेदन ◾ स्वेदन के योग्य – As we know, steaming cures cold so including- कास, प्रतिश्याय, हिक्का, श्वास (प्राणवह स्त्रोतस), अंग गौरव, गुरूता, स्तम्भ, सुप्रिया, शैत्य, सर्वांगजाडय। स्वेदन gives relief in शूल – कर्णशूल, मन्याशूल, शिरः शूल, जानुशूल, उरुशूल, जंघा शूल, कुक्षिशूल, अंगशूल। It gives relief in वात व्याधि – अर्दित, गृध्रसी, एकांगवात, सर्वांगवात, […]
आयुर्वेद में 3 प्रकार के देशों का वर्णन मिलता है। आज हम इन्हीं पर विस्तार से चर्चा करेंगे। देशों के बारे में बात करने से पहले यह जान लेते है कि देश भेद (Desh bhed) जानने की क्या आवश्यता है:- देश भेद जानने की आवश्यता :- यस्य देशस्य यो जन्तुस्तज्जं तस्यौषधं हितम् । देशादन्यत्र वसतस्तत्तुल्यगुणमौषधम्।। […]
Tantrayuktiya is present in Astanga Hridya’s Maulik Siddhant portion, Charak Uttarardh as well as sushrut samhita. Not only their is Change in number of tantrayuktiya of various Acharyas. But why to wait when one can learn them in 1st year itself. I know it’s tough to learn 40 Names all together but today we provide […]
बस्ति- बस्ति के प्रयोग से मल का निर्धारण किया जाता है, अतएव यहाँ वमन-विरेचन के करने के बाद तदनुरूप बस्तिविधि का उपदेश किया गया है। बस्ति का प्रयोग वात-प्रधान दोषो में अथवा केवल वातदोष में करना चाहिए। बस्ति को सभी उपक्रमों (चिकित्सा विधियों ) में अग्रगण्य (प्रमुख) माना जाता है। यह विधिभेद से तीन प्रकार […]
Raktmokshan / Leech Therapy = सुख से जीवन यापन करने वालों (सुकुमारों) का रक्तस्रावण करने के लिए जोकों का प्रयोग करना चाहिए। त्याज्य जोकों का वर्णन :– जो जोंकें दूषित जल में। अथवा मछली, मेंढक, साँप आदि प्राणियों के शवों की सड़न से अथवा उनके मल-मूत्रमिश्रित कीचड़ में से पैदा होती हैं। जो लाल, सफेद, […]