नस्य (Nasya) शब्द निष्पत्ति :- भावप्रकाश ने नासा मार्ग से औषध ग्रहण करने को नस्य (Nasya) कहा है। अरुण दत्त के द्वारा कहा गया है कि नासिका से नस्य दिया जाता है। ‘नस्य’ शब्द का अर्थ है – जो नासा (नाक) के लिए हितकारी है। उर्ध्वजत्रुविकारेषु विशेषान्नस्यमिष्यते। नासा ही शिरसो द्वारं तेन तद्व्याप्य हन्ति तान्। […]
Category: Charak Samhita
1. स्वेदन ◾ स्वेदन के योग्य – As we know, steaming cures cold so including- कास, प्रतिश्याय, हिक्का, श्वास (प्राणवह स्त्रोतस), अंग गौरव, गुरूता, स्तम्भ, सुप्रिया, शैत्य, सर्वांगजाडय। स्वेदन gives relief in शूल – कर्णशूल, मन्याशूल, शिरः शूल, जानुशूल, उरुशूल, जंघा शूल, कुक्षिशूल, अंगशूल। It gives relief in वात व्याधि – अर्दित, गृध्रसी, एकांगवात, सर्वांगवात, […]
आयुर्वेद में 3 प्रकार के देशों का वर्णन मिलता है। आज हम इन्हीं पर विस्तार से चर्चा करेंगे। देशों के बारे में बात करने से पहले यह जान लेते है कि देश भेद (Desh bhed) जानने की क्या आवश्यता है:- देश भेद जानने की आवश्यता :- यस्य देशस्य यो जन्तुस्तज्जं तस्यौषधं हितम् । देशादन्यत्र वसतस्तत्तुल्यगुणमौषधम्।। […]
संकर: प्रस्तरो नाडी परिषेकोऽवगाहनम्। जेन्ताकोऽश्मधन: कूर्ष: कुटी भू: कुम्भिकैव च।। कूपो होलाक इत्येते स्वेदयन्ति त्रयोदश:।। (च. सू. 14/39-40) संकर प्रस्तर नाडी परिषेक अवगाहन जेंताक अश्मघन कूर्ष कुटी भू कुंभी कूप होलाक 1. संकर स्वेद (Mixed fomentation) परिचय– स्वेदन द्रव्यों (तिल, उडद, कुलथी, मांस आदि) को कूट पीसकर पोट्टली बनाकर, सुखोष्ण करके जो स्वेदन किया जाता […]
Tantrayuktiya is present in Astanga Hridya’s Maulik Siddhant portion, Charak Uttarardh as well as sushrut samhita. Not only their is Change in number of tantrayuktiya of various Acharyas. But why to wait when one can learn them in 1st year itself. I know it’s tough to learn 40 Names all together but today we provide […]
जनपदोद्ध्वंसनीय अध्याय:- एक बार भगवान् पुनर्वसु शिष्यों सहित जनपद मण्डल के पाञ्चालक्षेत्र में श्रेष्ठ द्विजातियों (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) की आवासनगरी काम्पिल्य नामक राजधानी में गंगातटवर्ती वन्यप्रदेशों में घूमते हुए आषाढ़ मास में अपने शिष्य अग्निवेश से कहने लगे :- महामारी फैलने से पहले औषधियों का संग्रह करने का निर्देश :- अस्वाभाविक रूप में स्थित नक्षत्र, ग्रह, चंद्रमा, […]
प्रस्तुति : कालो हि नाम भगवान् स्वयम् भूरनादिमध्यनिधनोऽत्र।।। काल को भगवान कहा जाता है, जो किसी से उत्पन्न ना हो। काल आदि, मध्य और अंत रहित है। काल विभाजन काल विभाग इस प्रकार है- अक्षिनिमेष-1 मात्रा 15 मात्रा-1 काष्ठा 30 काष्ठा-1 कला 2 नाड़ीका-1 मुहूर्त 4 याम-1 दिन 4 याम-1 रात 15 दिन रात-1 पक्ष […]
Prameh ( प्रमेह ) : Diabetes
मेदोवह स्रोतस की दुष्टी ही प्रमेह उत्पन करती है। मेदोवह स्त्रोतस परिचय-मेद धातु का वहन करने वाले स्रोत को मेदोवह स्रोतस कहते हैं। मेदोवह स्त्रोतस का प्राकृत कर्म– शरीर में स्नेहन, स्वेदन तथा शरीर को दृढ़ता प्रदान करना है।विकृत कर्म- प्रमेह विकृत होने पर स्थौल्यादि विकारों की उत्पत्ति होती है। मेदोवह स्रोतो दुष्टी के कारण– […]
सूत्र स्थान चतुष्क :- सूत्र स्थान में आचार्य ने 4-4 अध्याय के 7 चतुष्क बनाए गए और अंतिम 2 अध्याय को संग्रहअध्याय कहा गया है। औषधि, स्वस्थ मनुष्य को निर्देशानुसार ही लेनी चाहिए व कलपना करनी चहिए की रोग होने पर योजना पूर्वक अन्न संग्रह करके रखें । औषधि – औषध चतुष्क औषध प्रयोग से […]
• 50 महाकषाय (Mahakashaya) हैं :- 1) हृदय महाकषाय: आम अमलवेतस आम्रा बेर बड़ी बेर दाड़िम करौंदा बड़हल वृक्षामल मातुलूँग 2) श्वाशहर महाकषाय: अगरु चोपचीनी तुलसी छोटी इलायची हींग जीवंती भूम्यालकि कचूर पुष्करमूल अमलवेतस 3) कासहर महाकषाय: आमलकी हरीतकी पीप्पली मुनक्का दुरालाभा कंटकारी कर्कट्श्रृंगी श्वेतपुनर्नवा रक्त पुनर्नवा भूम्यालकि 4) जीवनीय महाकषाय: जीवक ऋष्भक मेदा महामेदा […]