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Mahalakshmivilas Ras | महालक्ष्मीविलास रस : Types, Benefits, Uses

Mahalakshmivilas Ras (महालक्ष्मीविलास रस) is an Ayurvedic remedy which is an excellent Rasayana. It is the best cure for phlegm and respiratory disorders.

प्रथम महालक्ष्मीविलास रस:-

यह सभी शिरोरोगों का नाश करता है।

लौहमभ्रं विषं मुस्तं फलत्रयकटुत्रयम् । धुस्तूरं वृद्धदारञ्च बीजमिन्द्राशनस्य च ॥५७॥ गोक्षुरकद्वयञ्चैव पिप्पलीमूलमेव च । एतत्सर्वं समं ग्राह्यं रसे धुस्तूरकस्य च ॥५८॥ भावयित्वा वटी कार्या द्विगुञ्जाफलमानतः । महालक्ष्मीविलासोऽयं सन्निपातनिवारकः ॥५९॥ (र.सा.सं.)

घटक द्रव्य/ Ingredients:-

इन्हें समभाग लें।

  1. लौहभस्म (Bhasma of Iron)
  2. अभ्रकभस्म (Bhasma of Mica)
  3. शुद्धवत्सनाभविष चूर्ण (Aconitum ferox)
  4. नागरमोथाचूर्ण (Cyperus rotundus)
  5. सोंठचूर्ण (Zingiber officinale)
  6. पिप्पलीचूर्ण (Piper longum)
  7. मरिच चूर्ण (Piper nigrum)
  8. आमलाचूर्ण (Emblica officinalis)
  9. हरीतकीचूर्ण (Terminalia chebula)
  10. बिभीतकचूर्ण (Terminalia bellerica)
  11. शुद्ध धत्तूरबीजचूर्ण (Dhatura stramonium)
  12. विधाराबीजचूर्ण (Argyreia nervosa)
  13. शुद्ध भाँगचूर्ण (Cannabis sativa)
  14. बड़ागोक्षुरचूर्ण (Tribulus terrestris)
  15. छोटागोक्षुरचूर्ण (Tribulus terrestris)
  16. पिप्पलीमूलचूर्ण (Root of Piper longum)

निर्माण विधि/ How to make Mahalakshmivilas Ras:-

  • इन सभी द्रव्यों को एक साथ खरल में मिलाकर धत्तूरपत्रस्वरस की भावना दें।
  • और 250 mg (मि.ग्रा.) / 2-2 रत्ती की वटी बनाकर छाया में सुखा लें और काचपात्र में संग्रहीत करें।

मात्रा/ Dosage:-

250 mg (मि.ग्रा.)

वर्ण/ Colour:- श्याववर्ण । अनुपान:- मधु से। रस/ Taste:- कटु-कषाय । गन्ध/ Smell:- रसायनगन्धी ।

उपयोग/ Therapeutic Uses:-

सभी शिरोरोग में।

द्वितीय महालक्ष्मीविलास रस:-

Mahalakshmivilas ras

इस ‘महालक्ष्मीविलासरस‘ को देवर्षि नारद ने जगत्पति भगवान् श्री कृष्ण (वासुदेव) के लिए बताया था।

इसके प्रयोग से भयंकर सन्निपातज ज्वर, गलरोग, अन्त्रवृद्धि, अतिसार, 18 प्रकार के कुष्ठ, 20 प्रकार के प्रमेह, वातज एवं कफज श्लीपद, पुराना श्लीपद तथा वंशानुगत श्लीपद, नाडीव्रण, व्रण, भयंकर गुदरोग, भगन्दर, कास, पीनस, यक्ष्मा, अर्श, स्थौल्य, शरीरदौर्गन्ध्य, रक्तविकार, सभी लक्षणों से युक्त आमवात, जिह्वास्तम्भ, गलग्रह, उदररोग, कर्णरोग, नासारोग, नेत्ररोग, मुखरोग, सभी शूलरोग, शिरःशूल तथा स्त्री रोगों का नाश हो जाता है।

इस औषधि के प्रयोग से वृद्ध पुरुष भी स्त्रियों के साथ सम्भोग में तरुण (युवा) पुरुषों को भी जीत लेता है। उसके शुक्र का क्षरण नहीं होता है । पुरुष का लिङ्ग शिथिल नहीं होता है। केश नहीं पकते हैं। प्रतिदिन वह व्यक्ति हाथी के जैसा मदमस्त होकर सैकड़ों स्त्रियों के साथ संभोग करता है। उस व्यक्ति को 2 लाख योजन तक देखने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। उसका शरीर पुष्ट हो जाता है। इस औषधि के प्रभाव से वे लाखों स्त्रियों के स्वामी बने थे ।

Reference:-

पलं वज्राभ्रचूर्णस्य तदर्द्धो गन्धको भवेत् । तदर्द्धं वङ्गभस्मापि तदर्द्ध पारदस्तथा ॥ ११५॥ तत्समं हरितालं च तदर्द्धं ताम्रभस्मकम् । रसतुल्यं च कर्पूरं जातीकोषफले तथा ॥११६॥ वृद्धदारकबीजं च बीजं स्वर्णफलस्य च । प्रत्येकं कार्षिकं भागं मृतस्वर्ण च शाणकम् ॥ ११७॥ निष्पिष्य वटिका कार्या द्विगुञ्जाफलमानतः । निहन्ति सन्निपातोत्थान गदान् घोरान् सुदारुणान् ॥ ११८॥ गलोत्थानन्त्रवृद्धिं च तथाऽतीसारमेव च । कुष्ठमष्टादशविधं प्रमेहान् विंशतिं तथा ॥ ११९॥ श्लीपदं कफवातोत्थं चिरजं कुलजं तथा । नाडीव्रणं व्रणं घोरं गुदामयभगन्दरम् ॥१२०॥ कासपीनसयक्ष्मार्शःस्थौल्यदौर्गन्ध्यरक्तनुत् । आमवातं सर्वरूपं जिह्वास्तम्भं गलग्रहम् ॥१२१॥ उदरं कर्णनासाक्षिमुखवैजात्यमेव च। सर्वशूलं शिरःशूलं स्त्रीरोगं च विनाशयेत् ॥ १२२॥ वटिकां प्रातरेकैकां खादेन्नित्यं यथाबलम् । अनुपानमिह प्रोक्तं मांसं पिष्टं पयो दधि ॥ १२३॥ वारिभक्तं सुरासीधुसेवनात् कामरूपधृक् । वृद्धोऽपि तरुणस्पर्द्धी न च शुक्रक्षयो भवेत् ॥ १२४॥ न च लिङ्गस्य शैथिल्यं न केशा यान्ति पक्वताम् । नित्यं गच्छेच्छतं स्त्रीणां मत्तवारणविक्रमः ॥१२५॥ द्विलक्षयोजनी दृष्टिर्जायते पौष्टिकं तथा । प्रोक्तः प्रयोगराजोऽयं नारदेन महात्मना ॥१२६॥ महालक्ष्मीविलासोऽयं वासुदेवो जगत्पतिः । प्रसादादस्य भगवांल्लक्षनारीषु वल्लभः ॥१२७॥ (र.सा.सं.)

घटक द्रव्य/ Ingredients:-

  1. अभ्रकभस्म (Bhasma of Mica) – 50 ग्राम
  2. शुद्ध गन्धक (Purified and processed Gandhak) – 25 ग्राम
  3. वङ्गभस्म (Bhasma of Tin)- 12 ग्राम
  4. शुद्ध पारद (Purified and processed Mercury) – 6 ग्राम
  5. शुद्ध हरताल (Purified Orpiment) – 6 ग्राम
  6. ताम्र भस्म (Bhasma of Copper) – 3 ग्राम
  7. कर्पूर (Cinnamomum camphora) – 6 ग्राम
  8. जावित्रीचूर्ण / Mace (Myristica fragrans) – 6 ग्राम
  9. जायफलचूर्ण / Nutmeg (Myristica fragrans) – 6 ग्राम
  10. विधाराबीजचूर्ण (Argyreia nervosa) – 12 ग्राम
  11. शुद्ध धत्तूरबीजचूर्ण (Dhatura stramonium) – 12 ग्राम
  12. सुवर्णभस्म (Bhasma of Gold) – 3 ग्राम

निर्माण विधि/ Procedure:-

  • सर्वप्रथम एक खरल में पारद एवं गन्धक का मर्दन कर अच्छी कज्जली बनायें।
  • ततः उस कज्जली में भस्मों को मिलाकर मर्दन करे । ततः अन्य सभी चूर्णों को मिलाये और जल की भावना दें। (किन्तु प्रचलन में ताम्बूलस्वरस की १ भावना देनी चाहिए, जिसका कि ग्रन्थ में उल्लेख नहीं है)
  • 2-2 रत्ती / 250 mg (मि.ग्रा.) की मात्रा में वटी बनाकर छाया में सुखा लें तथा काचपात्र में संग्रहीत करें।

मात्रा/ Dosage:-

250 mg (मि.ग्रा.)

प्रयोग्य विधि/ How to use:-

  • 1-1 वटी प्रात:सायं (2 times a day) सेवन करना चाहिए।
  • इसे रसायन रूप में वमन-विरेचन कराकर शरीर शुद्धि के बाद ही प्रयोग करें।

अनुपान:-

रोगानुसार, मांसरस, पिसा हुआ अत्र, द्रव, गोदुग्ध, गोदधि, काञ्जी, सुरा एवं सीधु।

रस/ Taste:- कटु । गन्ध/ Smell:- कर्पूरगन्धी । वर्ण/ Colour:- रक्ताभ ।

उपयोग/ Therapeutic Uses:-