रसभस्म त्रयो भागा भागकं हेमभस्मकम्।
मित्रस्य भाग शिला गन्धक तालकम्।।
प्रतिभागद्वयं शुद्धमेकीकृत्य विचूर्णयेत्।
वराटिका तेन पिया चाजाक्षीरेण टंकणम्।।
पिष्ट्वा तेन मुखं रुद्ध्वा मृद्भाण्डे तां निरोधयेत्।
शुष्कं गजपुटे पाच्यं चूर्णयेत् स्वांग शीतलम्।।
दशपिप्पलिकैः क्षौद्र्मरिचैर्वा घृतान्वितैः।
गुञ्जा चतुष्ट्यशास्य क्षयरोग प्रशान्तये।। (र. सा. सं. यक्ष्मा चि. 2/3-6)
घटक द्रव्य :-
- पारद भस्म – 3 भाग
- रजत भस्म – 1 भाग
- शुद्ध गंधक – 2 भाग
- वराटिका – 1 भाग
- स्वर्ण भस्म – 1 भाग
- शुद्ध मनःशिला – 2 भाग
- शुद्ध हरताल – 2 भाग
Trick to Learn :-
परंतु वाटिका में सोना चांदी की गंध मन को हर लेती है।
- परन्तु – पारद भस्म
- वाटिका – वराटिका
- सोना – स्वर्ण भस्म
- चांदी – रजत भस्म
- गंध – गंधक
- मन – शुद्ध मन: शिला
- हर – शुद्ध हरताल
उपयोग, मात्रा व निर्माण विधि :-
निर्माण विधि:– सभी द्रव्यों के सूक्ष्म चूर्ण को वराटिका में भरकर वराटिका के मुख को अजाक्षीर और टंकण के कल्क से सन्धि बंधन कर देते है। फिर इन वराटिकाओं को शराव सम्पुट कर गजपुट में पाक करते हैं। स्वांगशीत होने पर वराटिकाओं सहित चूर्ण करके सुरक्षित रख देते हैं।
मात्रा:- 250 से 500 मि. ग्राम
अनुपान– पिप्पली चूर्ण एवं मधु, मरिच चूर्ण एवं घृत मुख्य
उपयोग :- क्षय रोग।