Acharya Sushruta mentioned 21 Vatarmgata roga ( disorders of eye lids ) in his samhita along with their symptoms and management.
Trick to learn Vatarmgata Roga:-
श्याम संग बहल लगण में पं प्रक्लिन्न ने पोथी से अंज्जन विष से अर्श मे चोट करना बताया। कुंभ ने निमेष को शर्करा बंधन लगाया जिससे पक्ष के अर्बुद मे क्लिष्टता हुई।
- श्याम – श्यामवतर्म
- संग – उत्संगिनी
- बहल – बहलवतर्म
- लगण – लगण
- पं प्रक्लिन्न – प्रक्लिन्न व अप्रक्लिन्न
- पोथी – पोथकी
- अंज्जन – अंज्ननामिका
- विष – विसवतर्म
- अर्श – 3 ( अर्श वतर्म, शुष्क अर्श, शोणित अर्श )
- चोट – वातहत वतर्म
- कुंभ – कुंभिका
- निमेष – निमेष
- शर्करा – वर्तमशर्करा
- बंधन – वर्तमबंधन
- पक्ष – पक्षमकोप
- अर्बुद – अर्बुद
- क्लिष्टवतर्म – क्लिष्टवतर्म व कर्दम वतर्म
USKe PAv BB (big boss) k Sath KK aur VANs Ne Bhi Pure kha Liye.
(just see the caps letter )
- USKe – उत्संगिनी, शर्करा, कुंभिका
- PAv – पोथकी, अर्श ( 3)
- BB (BIG BOSS) बहलवतर्म, वतर्म बंधन
- K – क्लिष्ट वतर्म
- Sath – श्यामवतर्म
- KK – कर्दमवतर्म, प्रक्लिन्न व अप्रक्लिन्न वतर्म
- VANs – वातहत, अर्बुद, निमेष
- Bhi – विसवतर्म
- Pure – पक्षमकोप
- Liye – लगण
Quick revision :-
उत्संङ्गिनी | अधो वतर्म मे मुख भितर, भाहार उभरी हुई, अनेक पीडीका से घिरी लाल वर्ण की पिडीका, फूटने पर मुर्गी समान स्त्राव | लेखन कर्म, त्रिदोषज साध्य, भेदन, पीडन | Chalazion – it is also called tarsal or meibomian cyst, it is chronic non specific inflammatory granuloma of the meibomian gland |
कुंभीका | वतर्म के ऊपर अनार बीज पिडीका, फूटने पर फिर फूलना, कृष्ण व अंदर बहुत सारी पिडिका | लेखन, त्रिदोषज साध्य, प्रतिसारण | multiple chalazion |
पोथकी | लाल सरसो सदृश पीडिका, स्त्राव, कण्डु, भारीपन, श्वेत शोफ, मेल युक्त पिछिल आश्रु | लेखन कर्म कफ साध्य, प्रच्छान व लेखन, प्रतिसारण | Trachoma – it is contagious kerato conjunctivitis, characterised by formation of follicles, papillae and hypertrophy of conjunctiva with ciatrical changes |
वतर्मशर्करा | खर, स्थूल पीडिका, अन्य सुक्ष्म पीडिका से व्यापत, पलक अंदर से रेती समान खुदरी व रुक्ष | लेखन, त्रिदोष साध्य, शस्त्र से काटकर लेखन | conjunctival concreations |
अर्शोवतर्म | ककडी बीज समान, मंद वेदना, सुक्ष्म पीडीका, अर्श समान अधिक मास, रक्तवर्ण, रक्त स्त्राव छेदन से वृद्धि | असाध्य | Granuloma of lid |
शुष्कार्श | लंबा, खुरदरा, अंकुर पलक के अंदर | छेदन, त्रिदोषज साध्य | Polyp of Palpeberal conjunctiva |
अंजननामिका | ताम्र, मृदु, पलक के बीच या किनारे पर छोटी पीडीका, दाह, तोंद, अल्प पीडा | भेदन, रक्तज साध्य, स्वयं भिन्न हो तो शस्त्रकर्म | Stye – it is an acute suppurative inflammation of the follicle of an eyelash or associated gland of zeis or moll |
बहलवतर्म | समान वर्ण, समान आकृति, मांस भड जाना, गुरूता | लेखन कर्म त्रिदोष साध्य | Multiple chalazion |
वतर्मबंधन | खुजली, सुई चुभने समान पीडा, नेत्र पूर्ण बंध न होना | लेखन त्रिदोषज साध्य | Angioneurotic Oedema or allergic oedema of lids |
क्लिष्टवतर्म | मृदु, अल्प वेदना युक्त, ताम्र, शोथ रहित बिना कारण लाल होना | लेखन | Oedema of lid |
वतर्म कर्दम | रक्त पित्त विदग, वतर्म क्लेद या मैला कीचड समान काला वतर्म | लेखन कर्म, त्रिदोषज साध्य | Mucopurulent conjunctivitis |
श्यामवतर्म | वतर्म अंदर बहार श्याम होजाना, शोथ, दाह वेदना | लेखन कर्म | Inflamation of lids |
प्रक्लिन्नवतर्म | शोथ वेदना रहित, अंदर क्लेद स्त्राव, कण्डु व सूचीवध पीडा | कफज साध्य, स्नेहन, स्वेदन, विरेचन, सेक, अंजन, नस्य, धूम्रपान | Allergic conjunctivitis |
अक्लिन्नवतर्म (पिल्ल) | बार बार पलक चिपकना, पाक न होना | लेखन त्रिदोषज साध्य, अंजन,लेखन, स्नेह,स्वेदन,सिरावेध, विरेचन | Chronic bacterial conjunctivitis |
वातहतवतर्म | संधि मुक्त, चेष्टारहित, आंख खुली रहती हैं ( पीडा हो भी सकती है और नहीं भी। | असाध्य | lagophthalmos- it is a condition in which the Palpeberal aperture can not be closed properly when eyes are shut |
निमेष | वात वतर्म चलमनाय होना | वातज असाध्य | blepharospasm – it is involuntary, sustained and forceful closure of eyelids |
अर्बुद | विषमकार ग्रंथि, वेदना रहित, रक्तयुक्त, बहार से हिलाने पर हिलने वाली | छेदन त्रिदोष साध्य | benign lid tumour |
लगण | कोल प्रमाण ग्रंथि, वेदनारहित, कण्डु पाक रहित,स्थूल, पिच्छिल, कठिन | कफज साध्य भेदन, छेदन, अग्निकर्म | Chalazion |
विस वतर्म | शोथ, अनेक छिद्र, कमल समान स्त्राव | inflamation of lids | |
पक्षमकोप | पक्ष्म मे वात जाकर बाल को तीक्ष्ण, खर, पलक मुड जाती है, नेत्र मे रगड, रोगी वात, धूप, अग्नि सहन नहीं कर पाता | त्रिदोष याप्य भेषज, क्षार, अग्नि, शस्त्रकर्म | Trichiasis – it is inward misdirection of cilia with the lid margins remaining in the normal position |
लेखन विधि :-
ज्यादातर (Vatarmgata)रोग लेखन साध्य बताए है। इसलिए अगर चिकित्सा याद न आए और रोग साध्य हो तो लेखन विधि का विस्तार से वर्णन किया जा सकता है।
- स्नेहन वमन विरेचन से शरीर शोधन करवाए
- उत्तान लिटाए व रोगी को पकड़े, वाम हाथ अंगुष्ट व अंगुली से वतर्म को उलटा करके सुखोष्ण जल मे भिगोए वस्त्र से शेफालिका पत्र आदि द्वारा प्रच्छान
- गोजिह्वा, शोफालिका पत्र द्वारा लेखन कर्म, सुप्त रक्त के स्थिर होने पर स्वेदन
- मैनसिल, कसीस, त्रिकटु, रसांजन, सैंधव, शहद मिलाकर प्रतिसारण।
- मंद उष्ण जल से प्रक्षालन, घृत से संचित कल्क से व्रण रोपन
- तीन दिन बाद स्वेदन, अवपीड नस्य
सम्यक लक्षण :-
स्त्राव रहित , कण्डु, शोफ रहित, वतर्म समतल होना, नख के समान वर्ण होना।
अयोग के लक्षण :-
नेत्र लाल व स्त्रावयुक्त होना, गाढा रक्त निकलना, शोथ अंधेरा छा जाना, व्याधि शांत नही होती है, वतर्म श्याम वर्ण, भारी, स्तंभ, कण्डु, हर्षान्वित, कीचड युक्त, पाक होना।
चिकित्सा :-
स्नेहन करके लेखन कर्म
अतियोग के लक्षण :-
पलक उलटी हो जाना, बालो का टूटना, वेदना, स्त्राव अधिक होता हैं।
स्नेहन स्वेदन व वातनाशक कर्म।
पिल्ल :-
कफज उत्क्लिष्टवर्त्म, 2. पित्तोत्क्लिष्टवर्त्म, 3. रक्तोत्क्लिष्टवत्यं 4 सन्निपातोत्क्लिष्टवर्त्म, 5. कुकूणक, 6. पक्ष्मोपरोध, 7. शुष्काक्षिपाक 8. पूयालस 9. बिसवर्त्म, 10. पोथको 11 अम्लोषित 12. अल्पशोफ, 13. पित्ताभिष्यन्द, 14. पित्ताधिमन्थ, 15. कफाभिष्यन्द, 16. कफाधिमन्थ, 17. रक्ताभिष्यन और 18. रक्ताधिमन्थ। ये अठारह रोग यदि दीर्घकाल तक ठीक नहीं हो पाते हैं, तो इन्हें ‘पिल्ल’ कहा जाता है।
चिकित्सा :-
स्नेहन, वमन, सिरवेध, स्नेहन, विरेचन, लेखन कर्म जबतक रोग शांत न हो जाए।