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Lakshmivilas Ras | लक्ष्मीविलास रस : Types, Uses, Benefits

लक्ष्मीविलास रस (Lakshmivilas Ras) सभी योगों के राजा के रूप में प्रसिद्ध है। इसके सेवन से क्षय, त्रिदोषोत्पन्न पाण्डुु (Anemia) , कामला (Jaundice) , सभी प्रकार के वातविकार, शोथ (Oedema), प्रतिश्याय (Common Cold), शुक्रक्षय, अर्श (Piles), शूल, कुष्ठ, अग्निमान्द्य, सन्निपात ज्वर, श्वास एवं कास जैसे रोगों को नष्ट कर देता है। इससे शरीर में तरुणाई एवं जवानी आ जाती है। इसे 1 से 2 रत्ती तक विभिन्न अनुपान से प्रयोग करें।

प्रथम लक्ष्मीविलास रस:-

सुवर्णताराभ्रकताम्रवग्ङ- त्रिलोहनागामृतमौक्तिकानि। एतत्समं योज्य रसस्य भस्म खल्ले कृतं स्यात्कृतकज्जलीकम्॥२१५॥ सुमर्दयेन्माक्षिकसमप्रयुक्तं तच्छोषयेद् द्वित्रिदिनं च धर्मे। तत्कल्कमूषोदरमध्यगामि यत्नात्कृतं तार्क्ष्यपुटेन पक्वम् ॥२१६॥ यामाष्टकं पावकमर्दितं च लक्ष्मीविलासो रसराज एषः। क्षये त्रिदोषप्रभवे च पाण्डौ सकामले सर्वसमीरणेषु ॥२१७॥शोफप्रतिश्यायप्रणष्टवीर्यं मूलामयं चैव सशूलकुष्ठम्। हत्वाऽग्निमान्द्यं क्षयसन्निपातं श्वासं च कासं च हरेत्प्रयुक्तम् ।तारुण्यलक्ष्मीप्रतिबोधनाय श्रीमद्विलासो रसराज एषः ॥२१८॥ — (यो. रत्ना.)

घटक द्रव्य/ Ingredients:-

  1. सुवर्ण भस्म (Bhasma of Gold) = 1 भाग
  2. रजत भस्म (Bhasma of Silver) = 1 भाग
  3. अभ्रक भस्म (Bhasma of Mica) = 1 भाग
  4. ताम्र भस्म (Bhasma of Copper) = 1 भाग
  5. वङ्ग भस्म (Bhasma of Tin) = 1 भाग
  6. कान्तलौह भस्म (Bhasma of a type of Iron) = 1 भाग
  7. तीक्ष्णलौह भस्म (Bhasma of a type of Iron) = 1 भाग
  8. मुण्ड लौह भस्म (Bhasma of a type of Iron) = 1 भाग
  9. नाग भस्म (Bhasma of Lead) = 1 भाग
  10. शुद्ध वत्सनाभ विष (Aconitum ferox) = 1 भाग
  11. मोती पिष्टि (Pisthi of pearl) = 1 भाग
  12. रससिन्दूर (Ras sindoora)= 11 भाग

निर्माण विधि/ How to make Lakshmivilas Ras:-

  1. सर्वप्रथम खरल में रससिन्दूर को अच्छी तरह मर्दन करें।
  2. ततः अन्य सभी द्रव्यों को मिलाकर अच्छी तरह मर्दन करें।
  3. इसके बाद मधु (Honey) मिलाकर 3 दिनों तक धूप में बैठकर दृढ़ मर्दन करें।
  4. पुनः उसे गोला बनाकर मूषा या शराव सम्पुट कर कुक्कुटपुट में पाक करें।
  5. स्वाङ्गशीत होने पर सम्पुट से मूषा या शराव सम्पुट को निकालकर उसमें से सावधानीपूर्वक औषधि गोलक निकाल लें।
  6. पुन: चित्रकमूलक्वाथ (Decoction of Plumbago zeylanica) में 24 घण्टे तक दृढ़ मर्दन करें
  7. और 1-1 रत्ती की वटी बनाकर छाया में सुखाकर कांचपात्र में सुरक्षित रख लें।

मात्रा/ Dosage:-

125 से 250 mg (मि.ग्रा.) or 1 से 2 रत्ती

अनुपान:- रोगानुसार।

गन्ध/ Smell:- मधुराभ और रसायनगन्धी।

वर्ण/ Appearance:- रक्तवर्ण (Reddish colour)

स्वाद/ Taste:- मधुर, कटु ।

उपयोग/ Therapeutic Uses:-

  1. यक्ष्मा (Tuberculosis)
  2. वातव्याधि (Neurological disorders)
  3. दौर्बल्य (Weakness)
  4. कास (Cough)
  5. श्वास (Respiratory disorders)

द्वितीय लक्ष्मीविलास रस:-

इस औषधि के सेवन से शरीर कामदेव के समान सुन्दर हो जाता है। इस ‘लक्ष्मीविलासरस’ (Lakshmivilas Ras) को श्री महादेवजी ने कहा है।

शुद्धसूतं सतालञ्च तालाङ्कुरं सखर्परम् । वङ्गं ताम्रं घनं कान्तं कांस्यकं च पलं पलम् ॥ १३० ॥ केशराजरसेनैव भावयेद्दिवसत्रयम् । कुलत्थस्य रसेनापि भावयेच्च पुनः पुनः ॥१३१॥ एलाजातीफलाख्यञ्च तेजपत्रं लवङ्गकम् । यमानी जीरकञ्चैव त्रिकटु त्रिफला समम् ॥१३२॥ नतं भृङ्गं वंशगर्भं कर्षमात्रञ्च कारयेत् । भावयेच्च रसेनाथ गोलयेत्सर्वमौषधम् ॥ १३३ ॥ छायाशुष्का वटी कार्या चणकप्रमिता तथा । शीताम्बुना पिबेद्धीमान् सर्वकासनिवृत्तये ॥१३४॥ मत्स्यं मांसं तथा क्षीरं पथ्यं स्यात्स्निग्धभोजनम् । क्षयं कासं तथा श्वासं ज्वरं हन्ति न संशयः ॥१३५॥ हलीमकं पाण्डुरोगं शोथं शूलं प्रमेहकम्। अर्शोनाशं करोत्येष बलपुष्टिञ्च कारयेत् ॥ १३६।॥ कामदेवसमं वर्णं तृष्णाऽरोचकनाशनम् । वर्ज्यं शाकाम्लमादौ च भृष्टद्रव्यं हुताशनम् ।। रसो लक्ष्मीविलासोऽयं महादेवेन भाषितः ॥१३७॥ (र.सा.सं.)

घटक द्रव्य/ Ingredients:-

  1. शुद्ध पारद (Purified and processed Mercury) = 46 ग्राम
  2. हरताल (Purified and processed Yellow Arsenic) = 46 ग्राम
  3. शुद्ध मन:शिला ( Purified and processed Red Arsenic) = 46 ग्राम
  4. खर्पर भस्म (Bhasma of Zinc) = 46 ग्राम
  5. वङ्ग भस्म (Bhasma of Tin) = 46 ग्राम
  6. ताम्र भस्म (Bhasma of Copper) = 46 ग्राम
  7. अभ्रक भस्म ( Bhasma of Mica) = 46 ग्राम
  8. कान्तलौह भस्म (Bhasma of Iron) = 46 ग्राम
  9. कांस्य भस्म (Bhasma of Bronze) = 46 ग्राम लें।

भावना द्रव:- भृङ्गराजस्वरस (Eclipta alba) और कुलत्थक्वाथ।

  1. छोटी इलायचीचूर्ण (Elettaria cardamomum)
  2. जायफलचूर्ण (Myristica fragrans)
  3. तेजपत्रचूर्ण (Cinnamomum tamala)
  4. लवंगचूर्ण ( Syzygium aromaticum)
  5. अजवायनचूर्ण (Tachyspermum ammi)
  6. जीराचूर्ण (Cuminum cyminum)
  7. शुण्ठी चूर्ण (Zingiber officinale)
  8. पिप्पलीचूर्ण (Piper longum)
  9. मरिचचूर्ण (Piper nigrum)
  10. आमलाचूर्ण (Emblica officinalis)
  11. हरीतकीचूर्ण (Terminalia chebula)
  12. बहेड़ाचूर्ण (Terminalia bellerica)
  13. तगरचूर्ण (Crepe jasmine)
  14. भृङ्गराज चूर्ण (Eclipta alba)
  15. वंशलोचनचूर्ण (Bamboo manna) – ये 15 द्रव्य प्रत्येक 12-12 ग्राम चूर्ण ले।

निर्माण विधि/ Procedure:-

  1. सर्वप्रथम एक खरल में पारद एवं हरताल का एक साथ मर्दन कर कज्जली बना लें।
  2. ततः उसमें मनःशिला देकर 1 दिन तक और दृढ़ मर्दन करें।
  3. इसके बाद उक्त कज्जली में उपर्युक्त सभी भस्मों को मिलाकर मर्दन करें और भृङ्गराजस्वरस की 3 दिनों तक भावना दें।
  4. पुनः 3 दिनों तक कुलत्थक्वाथ की भावना दें।
  5. पुनः उपर्युक्त छोटी इलायची से वंशलोचन तक के सभी 15 द्रव्यों का सूक्ष्म चूर्ण उपर्युक्त भावित भस्मों में मिलाकर मर्दन करें।
  6. और पूर्ववत् भृङ्गराजस्वरस एवं कुलत्थक्वाथ की 3-3 भावना देकर 6 दिनों तक मर्दन करें।
  7. इसके बाद 2-2 रत्ती की वटी बनाकर छाया में सुखा लें, पुनः काचपात्र में सुरक्षित रख लें।

प्रयोग/ How to use:-

1-1 वटी प्रात:सायं (2 times a day) शीतल जल (Cool water) के साथ लें।

पथ्य:- मछली, मांस, मांसरस तथा दूध और स्निग्ध भोजन। अपथ्य:- अम्लशाक पदार्थ, आग पर भुना हुआ पदार्थ एवं अग्निसेवन।

Lakshmivilas Ras tablets
Lakshmivilas Ras tablets

मात्रा/ Dosage:-

250 mg (मि.ग्रा.)

अनुपान:- शीतल जल ये गय रसायन गन्धी। वर्ण/ Colour:- श्याव। स्वाद/ Taste:- तिक्त, कटु

उपयोग/ Therapeutic Uses:-

  • क्षय
  • कास (Cough)
  • श्वास (Respiratory disorders)
  • ज्वर (Fever)
  • हलीमक
  • पाण्डु (Anemia)
  • शोथ (Inflammation, oedema)
  • शूल (Swelling)
  • प्रमेह (Diabetes mellitus)
  • अर्श (Piles)
  • शरीर को बलवान् एवं पुष्ट करता है।
  • तृष्णा (Polydypsia)
  • अरुचि (Anorexia)

तृतीय लक्ष्मीविलासरस:-

यह ‘लक्ष्मीविलास रस’ ‘चतुर्मुखरस’ जैसा ही गुणकारक है। अर्थात् सभी प्रकार के वातविकारों (वातज रोगों) का नाश करता है।

पलं कृष्णाभ्रचूर्णस्य तदर्धौ रसगन्धकौ ।बलानागबलाभीरुविदारीकन्दमेव च ॥१५२॥ कृष्णधुस्तूरनिचुलं गोक्षुरवृद्धदारयोः। बीजं शक्राशनस्यापि जातीकोषफले तथा ॥१५३॥ कर्पूरञ्चैव कर्षांशं श्लक्ष्णचूर्णं पृथक् पृथक् । गृहीत्वा चाष्टमांशेन स्वर्णं पर्णरसेन च ॥ १५४॥ वटिकां स्विन्नचणकप्रमाणां कारयेद्भिषक् । रसो लक्ष्मीविलासोऽयं पूर्ववद् गुणकारकः ॥१५५॥ (र.सा.सं.)

घटक द्रव्य/ Ingredients:-

  1. अभ्रकभस्म (Bhasma of Abhrak) – 46 ग्राम
  2. शुद्ध पारद (Purified and processed Mercury) – 23 ग्राम
  3. शुद्ध गन्धक (Sulphur) – 23 ग्राम
  4. बलामूलचूर्ण (Sida cordifolia) – 12 ग्राम
  5. नाग बलाचूर्ण (Sida veronicaefolia) – 12 ग्राम
  6. शतावरीचूर्ण (Asparagus racemosus) – 12 ग्राम
  7. विदारीकन्द चूर्ण (Pueraria tuberosa) – 12 ग्राम
  8. शुद्ध कालाधत्तूरबीजचूर्ण (Datura stramonium) – 12 ग्राम
  9. समुद्रशोष बीजचूर्ण (Argyreia nervosa) – 12 ग्राम
  10. गोक्षुरचूर्ण (Tribulus terrestris) – 12 ग्राम
  11. विधाराचूर्ण (Elephant creeper) – 12 ग्राम
  12. भाँग का बीजचूर्ण (Cannabis sativa) – 12 ग्राम
  13. जायफलचूर्ण / Nutmeg (Myristica fragrans) – 12 ग्राम
  14. जावित्रीचूर्ण / Mace (Myristica fragrans) – 12 ग्राम
  15. कपूर (Cinnamomum camphora) – 12 ग्राम
  16. स्वर्ण भस्म (Bhasma of Gold) – 1500 मि.ग्रा. (डेढ ग्राम)

निर्माण विधि/ Procedure:-

  1. सर्वप्रथम एक पत्थर के खरल में पारद एवं गन्धक रखकर मर्दन करें।
  2. अच्छी तरह कज्जली बन जाने पर उसमें अभ्रक एवं स्वर्णभस्म मिला लें,
  3. ततः सभी काष्ठौषधादि चूर्णों को मिलाकर मर्दन करें।
  4. इसके बाद ताम्बूलपत्रस्वरस (Juice of Leaves of Paan) की भावना देकर उबले हुए चने के बराबर अर्थात् 250 mg (मि.ग्रा.) या 2-2 रत्ती की वटी बनाकर छाया में सुखा लें, बाद में काचपात्र में संग्रहीत करें।

मात्रा/ Dosage:-

250 mg (मि.ग्रा.)।

अनुपान:- मधु एवं रोगानुसार।

गन्ध/ Smell:- कर्पूरगन्धी। वर्ण/ Colour:- कृष्णाभ (Blackish colour)। स्वाद/ Taste:- कटु।

उपयोग/ Therapeutic Uses:-

वातविकारों में।

चतुर्थक लक्ष्मीविलासरस (नारदीयः)/ Lakshmivilas Ras (Nardiya)

Lakshmivilas Ras (Nardiya)
Lakshmivilas Ras (Nardiya)

इस प्रयोगराज “लक्ष्मीविलासरस” को महर्षि नारद ने भगवान् श्रीकृष्ण को बताया था, जिसके प्रयोग से भगवान् श्रीकृष्ण लाखों स्त्रियों के पति हुए थे।

इसके सेवन से मनुष्य साक्षात् कामदेव- स्वरूप हो जाता है। वृद्ध भी संभोग में युवाओं से मुकाबला करने लगता है। इससे बढ़कर पुष्टिकर कोई अन्य औषधि नहीं है (इसमें अतिशयोक्ति अधिक है)।

इस लक्ष्मीविलास रस के सेवन से सन्रिपातजन्य 4 प्रकार के भयंकर रोग नष्ट हो जाते हैं। इसके सेवन से 18 प्रकार के कुष्ठ, 20 प्रकार के प्रमेह, नाड़ीव्रण, भयंकर व्रण, गुद के रोग, भगन्दर, कफ-वातोत्थ और रक्त-मांसाश्रित, मेदोगत, शुक्रगत तथा वंशानुगत (Hereditary), श्लीपद, गलगत शोथ, आन्त्रवृद्धि, भयंकर अतिसार, सभी तरह के आमवात, जिह्वास्तम्भ, गलग्रह, उदररोग, कर्णविकृति, नासाविकृति, नेत्रविकृति, मुखविकृति, कास, पीनस, यक्ष्मा, अर्श, स्थूलता, शरीर की दुर्गन्ध, सभी प्रकार के शूल, शिर:शूल और स्त्रियों के सभी रोगों का नाश हो जाता है।

Reference:-

पलं कृष्णाभ्रचूर्णस्य तदर्द्धौ रसगन्धकौ। तदर्धं चन्द्रसंज्ञस्य जातीकोषफले तथा ॥१२००॥ वृद्धदारकबीजं च बीजं धुस्तूरकस्य च। त्रैलोक्यविजयाबीजं विदारीमूलमेव च ॥१२०१॥ नारायणी तथा नागबला चातिबला तथा। बीजं गोक्षुरकस्यापि नैचुलं बीजमेव च ॥१२०२॥ एतेषां कार्षिकं चूर्णं पर्णपत्ररसैः पुनः । निष्पिष्य वटिका कार्या त्रिगुञ्जाफलमानतः ॥१२०३ ॥ निहन्ति सन्निपातोत्थान् घोरांश्चैव चतुर्विधान् । वातोत्थान् पैत्तिकांश्चैव नास्त्यत्र नियमः क्वचित् ॥१२०४॥ कुष्ठमष्टादशविधं प्रमेहान् विंशतिं तथा। नाडीव्रणं व्रणं घोरं गुदामयभगन्दरम् ॥१२०५॥ श्लीपदं कफवातोत्थं रक्तमांसाश्रितं च यत् । मेदोगतं धातुगतं चिरजं कुलसम्भवम् ॥१ २०६॥ गलशोथमन्त्रद्धिमतीसार सुदारुणम्। आमवातं सर्वरूपं जिह्वास्तम्भं गलग्रहम् ॥१२०७॥ उदरं कर्णनासाऽक्षिमुखवैकृतमेव च।कासपीनसयक्ष्मार्श:स्थाल्यदुर्गन्धनाशनः ॥१२०८॥ सर्वशूलं शिरःशूलं स्त्रीणां गदनिषूदनम् । वटिकां प्रातरेकैकां खादेन्नित्यं यथाबलम् ॥१२०९॥ अनुपानमिह प्रोक्तं माषपिष्टं पयो दधि । वारिभक्तसुरासीधुसेवनात् कामरूपधृक् ॥१२१०॥ वृद्धोऽपि तरुणस्पर्धी न च शुक्रस्य संक्षयः । न च लिङ्गस्य शैथिल्यं न केशा यान्ति पक्वताम् ॥१२११॥ नित्यं स्त्रीणां शतं गच्छेन्मत्तवारणविक्रमः । द्विलक्षयोजनी दृष्टिर्जायते पौष्टिकं परः ॥१२१२॥ प्रोक्तः प्रयोगराजोऽयं नारदेन महात्मना । रसो लक्ष्मीविलासस्तु वासुदेवो जगत्पतिः । अभ्यासादस्य भगवांल्लक्षनारीषु बल्लभः ॥१२१३॥ (रसेन्द्रचिन्तामणि)

विशेष—रसगन्धककर्पूरजातीकोषफलानां पञ्चानां प्रत्येकं पलार्द्ध वृद्धदारकबीजादीनां नवद्रव्याणां प्रत्येकं कर्ष इति भट्टादि व्यवहारः। राढीयास्तु रसगन्धकयोर्मिलित्वा कर्षो, वृद्धदारक बीजादिनवद्रव्याणां मिलित्वा कर्षच्श्रेत्याहः ॥१२२३-१२३६॥

घटक द्रव्य/ Ingredients:-

  1. अभ्रकभस्म (Bhasma of Abhrak) – 40 ग्राम
  2. शुद्ध पारद (Mercury)- 20 ग्राम
  3. शुद्ध गन्धक (Sulphur) – 20 ग्राम
  4. कर्पूर (Cinnamomum camphora) – 20 ग्राम
  5. जावित्रीचूर्ण / Mace (Myristica fragrans) – 20 ग्राम
  6. जायफलचूर्ण / Nutmeg (Myristica fragrans) – 20 ग्राम
  7. विधाराबीजदूर्ण (Elephant creeper) – 10 ग्राम
  8. धतूरबीजचूर्ण (Datura stramonium) – 10 ग्राम
  9. भाँगपत्रचूर्ण (Cannabis sativa) – 10 ग्राम
  10. विदारीकन्दचूर्ण (Pueraria tuberosa) – 10 ग्राम
  11. शतावरीचूर्ण (Asparagus racemosus) – 10 ग्राम
  12. नागवलाचूर्ण (Sida veronicaefolia) – 10 ग्राम
  13. अतिबलावूर्ण (Abutilon indicum) – 10 ग्राम
  14. गोक्षुरबीजचूर्ण (Tribulus terrestris) – 10 ग्राम
  15. हिज्जलबीजचूर्ण (Barringtonia acutangular) – 10 ग्राम

निर्माण विधि/ Procedure:-

  1. सर्वप्रथम पत्थर के खरल में पारद एवं गन्धक को एक साथ मर्दन कर कज्जली बनावें।
  2. ततः अन्य सभी द्रव्यों के सूक्ष्म चूर्ण मिलाकर कज्जली के साथ मर्दन करें।
  3. पुनः ताम्बूलपत्र के स्वरस की भावना देकर 3 घण्टे तक मर्दन करें
  4. 3-3 रत्ती की वटी बनाकर छाया में सुखा लें तथा काचपात्र में सुरक्षित रख लें।

मात्रा/ Dosage:-

375 से 500 mg (मि.ग्रा.)।

अनुपान:- रोगानुसार।

गन्ध/ Smell:- कर्पूरगन्धी। वर्ण/ Colour:- श्याव। स्वाद/ Taste:- तिक्त।

उपयोग/ Therapeutic Uses:-